मेहरगढ़के राजा महेंद्रसिंहने गुप्त-सन्देशको अपने विश्वास-पात्रोको दिखातेहुए कहा, "इसमें संदेह नहींहैं की अब हमेंभी कमर-कस लेनी चाहिए, ऐसेही सन्देश काठीपुरमके सम्राटके पासभी आयेथे। उस 'अज्ञात-ख़तरे'ने दो गुप्त-सन्देश भेजेथे...
सवारी गायब करूँगा
शान गायब करूँगा
अशुभचिंतक 'अज्ञात-खतरा'
... और कुछही दिनोंमें शाही अस्तबलमें से पूरे छप्पन घोड़े, कड़ी सुरक्षाको धत्ता दे गायब करदिए; फिर दो दिन बादही सशस्त्र सैनिकोसे संरक्षित काठीपुरमके राज-खजानेमें रखे सबसे कीमती चीज़ नीले-हीरे पर हाथ फेर गया"
अब हमें गुप्त-सन्देश आयेहैं ...
श्रृंगार गायब करूँगा
सुहाग गायब करूँगा
अशुभचिंतक 'अज्ञात-खतरा'
"शत्रु बहुत खतरनाकहैं, खुले-आम चेतावनीदे, नाकके नीचेसे इनको अंजाम देताहैं, मेरेभाई कुठारसिंह (काठीपुरमके राजा) ने इसे बहुत हलकेसे लिएथा और बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी।"
पहाड़ोंसे घिरे तीन गौरवमयी राज्य काठीपुरम, मेहरगढ़ और सूरनगर। एकसे बढ़कर एक, जहाँ काठीपुरमको धनाढ्योकी धरती माना जाताथा, वहीँ मेहरगढ़के दुर्गकी पताकाको वीरतासे रंगा गयाथा। सुरनगर गुणज्ञों, मेधावियोंसे अटाथा। तीनोही एक-दुसरेके पूरक, तीनो-भाई हर मुसीबतमें एक-दुसरे के साथथे। उनकी एकताके आगे सभी पड़ोसी राज्योंके हौसले पस्तथे।
बात बाहरवीं शताब्दी कीहैं, करीब पैतीस साल पहले शूरवीर-दिलेर राजा कामेसुकुमारने छोटे-छोटे नगर जीतकर विशालकाय कामेसुगढ़ जरूर बसाया पर चर्चामें सदैव उनका महाकाय हृदय ही रहा। कामेसुगढ़ के राजगुरु मानुबाबा अलौकिक शक्तिधारी दिव्य पुरुषथे। उनकी छाँवमें कामेसुगढ़ पूरे ब्रह्माण्डमें सुरक्षितथा। तरुणावस्थासे ही कामेसुकुमारने अपने राजगुरुके चरण ऐसे पकडे जो उन्हें सिद्धि, समग्रता और सफ़लताकी नोंकपर स्थापित करगए। एक अभागे दिन मानुबाबाने हिमालयमें समाधि लगानेकी कहकर अनिश्चित कालके लिए राज्यसे विदाईली। बीस वर्षो तकतो राजाने प्रजाके दिलो पर राज किया, एक दिवस राजाने घोषणा की वो राजगुरुको खोजने जा रहेहैं। जाते-जाते कामेसुगढ़को तीन नये राज्योंमें बाँट तीनों निपुण पुत्रोको उनका तख़्त संभलागए और इस तरह कामेसुगढ़से तीन नए राज्य काठीपुरम, मेहरगढ़ और सूरनगर बने।
महेंद्रसिंह: "कुठारसिंह और सूर्यसिंह (सुरनगरके राजा) हरवर्ष की तरह इस बारभी मेहरगढ़में शाही-सवारी निकलेगी, जिसमें तीनों राज्योंके राज परिवार शिरकत करतेहैं, लेकिन इस जालसाज-ठगने भयभीत किया हुआहैं।"
कुठारसिंह: "सुरक्षाके पुख्ता इंतजाम किये गएहैं, इस बार उसकी दुर्गति ही यहाँ खींचेगी।"
आभूषणोंसे जड़ी सुसज्जित रानियाँ, राजाओंके साथ राजसी-रथमें, सेनापति-मंत्री हाथियों पर, पीछे-पीछे पूरा कारंवा। जनतामें कुलीनोंके करीब आनेकी होड़ मचीहैं। स्त्री-पुरुष रानियोंकी सुंदरता और राजाओंकी ठाट-बाट, रईशी पर रींझ रहेथे वही बच्चे एक साथ इतने सारे हाथी-घोड़े और ऊँट देखकर विस्मितथे।
"मेरा हार कहाँ गया?" मेहरगढ़की रानी सपकपायी! राज-कुनबेका सबसे श्रद्धास्पद आभूषण जिसे कामेसुकुमार की दादीको उनकी सासने दियाथा यकायक अलोप होगया। बात प्रतिष्ठाकी थी, राज्य प्रवेशमार्गके कपाट बंद कियेगए, घेराबंदी हुयी, एक-एक नागरिककी तलाशी लीगयी, भेदीयोंको लगाया गया। पूरे नगरमें दहशतंगेज़ी फ़ैलगयी लेकिन सुराग नहीं मिला।
इस संकटकालमें तीनो तजवीज़(सलाह) के लिए बैठे।
"जय बाबाबर्फानी! उड़ती हुयी एक बूढ़ी आवाज़ उनके कानोमें प्रतिध्वनित हुयी।
सूर्यसिंह चिल्लाया,'राजगुरु-मानुबाबा' पच्चीस साल बाद, बड़ा ही ख़ुशगवार पल आयाहैं।"
सबके दिल हिलोरें खाने लगा मानों जैसे मेलेमें माँ से बिछुडे बच्चेकी, माँ को देखतेही रुलाई फूट पड़तीहैं।
मानुबाबा: "अपने पूरे जीवन कालमें ऐसे विचित्र भयसे पहली बार सामना हुआहैं। दुश्मन बहुत स्यानाहैं उसके अपराधोंकी संगीनताभी उतनीही विचित्रहैं। मुझे आभाष हो रहाहैं की उसका अगला पड़ाव सूरनगर होगा, कोई भयंकर अहित होनेको हैं। मैं कल सूरनगरमें ध्यान लगाताहूँ। देवने चाहा तो पांचवे पहर सारे रहस्योंसे पर्दा हटा दूंगा।
बिना एक क्षण व्यर्थ किये पूरा रजवाड़ा और मानुबाबा दल-बल सहित सूरनगरको निकले। राजाओंकी आँखोंमें नींद कहाँ! पूरी रात खयालोमें कटती रही। बाबाके भेजे दूतोंने संदेशा दियाकी तीनों राजाओंको सूरनगरके छोर पर स्थित पुराने दुर्ग पहुँचानाहैं वही बाबाने ध्यान लगायाहैं। तीनोको अलग-अलग आनेके लिए कहागया।
महेंद्रसिंह दुर्ग पहुंचे। दुर्गके बिलकुल मध्यमें एक बड़ा स्वस्तिक बनाथा उसके ऊपर बाबा ध्यान मग्नथे। बीचमें विघ्न पैदा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ अंदरकी तरफ मशालोंकी रौशनीथी, भीतर जाकर देखा वह कुठारसिंह बैठाथा।
"मैं बहुत उतावला था, रहा नहीं गया और पहले चला आया, लेकिन मानुबाबा तो ध्यानमें है, वहां ऊपर बाबाने एक आदमीको बाँध रखा हैं। लगताहैं वहीँ हैं 'अज्ञात-खतरा'।
दोनों ऊपरको लपके। ऊपर पहुँचतेही, गलेमें घुटी हूंक के साथ महेंद्रसिंह फर्शपर जा गिरा। कुठारसिंह पीछेसे घोपा हुआ खंजर निकालते हुआ बोला, मैंही हुँ 'अज्ञात-खतरा'। महेंद्रसिंह फटी आँखोंसे देख रहाथा, कपकपायी आवाजमें बोला, तुमने ये सब क्यों किया? हमतो भाई हैं"
"कौनसे सगे भाईहैं, तीन रानियोंकी तीन संतानहैं, सौतेलेहैं हम।" मुझे अपना राज्य फैलानाहैं। अगरमें सीधा हमला करता तो तुम दोनों मिलकर मुझे परास्त करदेते। इसलिए मैंने अपने विश्वासपात्रोसे मिलकर ये साज़िश रची। एक राजाका अपनेही राज्यके हीरे-घोड़े गायब करना बहुत आसानहैं। रानीका पुश्तैनी हार भी मैंनेही अपनी पत्नीको बोलकर गायब करवायाथा, सबकी तलाशी हुयी लेकिन राजा-रानी की तलाशी कौन लेताहैं। मैं तुझे और सूर्यसिंह को 'अज्ञात-ख़तरे' की आड़ में मरवाता और फिर तीनो राज्यों पर राज करता लेकिन बीचमें ये बुड्ढा आगया और तेरी ज़िंदगीके बचे दिनभी खागया।
"मानुबाबा तुम्हे नहीं छोड़ेंगे राक्षस"
"वो बुड्ढा मेरा क्या बिगाड़ेगा, उसेतो पांचवे पहरमें पता चलेगा, उससे पहलेमें उसकी गर्दन उड़ादूंगा"
कुठारसिंह, मानुबाबाकी तरफ भागा, बाबा गहरे ध्यानमें, हवामें लहराती हुयी तलवार झटकेके साथ नीचे…
…तलवार नीचे आयी, कुठारसिंहके हाथ समेत नीचे जा गिरी। कुठारसिंहका कटाहाथ तलवारके साथ नीचे पड़ाथा। हथकटे ख़ौफ़ज़दा कुठारसिंहकी तरफ बाबाने लाल-कुपित आँखोंसे देखा, झुर्रियोंमें छिपे होंठ प्रचंड आँखोंका विरोध करतेहुए अट्टहासमें बदलगए। इस अट्टहासमें एकऔर आवाज़ आ मिली। कुठारसिंह पलटा, इस क़हक़हे का स्वामी सूर्यसिंह खड़ाथा। कुठारसिंहकी सारी इन्द्रिया ज़वाब देगयी। उसे मरनेसे पहले जानना थाकी आखिर ये हुआ क्याहैं?
" 'अज्ञात-खतरे' से मेंभी स्तब्धथा, मेने तेरी सारी बातें सुनली। मुझे नहीं पता थाकी तूही वो 'अज्ञात-खतरा' हैं, महेंद्रसिंहको मारकर तूने मेरा आधा काम करदिया 'अज्ञात-खतरे' हाहाहा। शाही-सवारी आयोज़नके दौरान विचार कौंधा की क्योंना 'अज्ञात-ख़तरे' का लाभ उठाकर बरसोसे सीनेमें पलरहे सपनेको पूरा कियाजाए? पच्चीस साल बाद राजगुरु मानु-बाबाको कौन पहचानेगा? हम तीनो तो उस समय बच्चेथे। मैंने अपने एक भरोसेमंदको मानुबाबा बनाया और तुम दोनोंको यहाँ बुलाया। तुम दोनोंको मारकर में लोगोंको कहूँगाकी 'अज्ञात-ख़तरे' ने तुम दोनोंको मारकर बाबाको क़ैद करलिया। तीनो राज्योंकी जनता मुझे राजा मान लेगी, उसके बादमै… " सूर्यसिंहकी बाकी बात अनकही रह गयी, घायल महेंद्रसिंहकी तलवारने उसका सर कलम करदिया। महेंद्रसिंहमें अभी जान बाकिथी, वो लड़खड़ाता हुआ जख्मी कुठारसिंहके पास पहुँचा और गला रेतदिया। महेंद्रसिंह नसोंमें अटकी समस्त प्राणवायु खीँच तलवार लिए नकली बाबाकी और दौड़ा लेकिन गश खाकर वहीं ढ़ेर होगया। दुर्गकी तमाशाई इमारतें अपनी बदक़िस्मती पर रो-रही थी, तीन भाई, तीन राजा, एक-दुसरे पर मरनेवाले, एक-दुसरे को मारदिया। लालचही वो 'अज्ञात-खतरा' था जिसकी कठपूतली बन ये स्वांग रच रहेथे फिर उस लालचने इनकी ज़िंदगीकी डोर खीचली।
सवारी गायब करूँगा
शान गायब करूँगा
अशुभचिंतक 'अज्ञात-खतरा'
... और कुछही दिनोंमें शाही अस्तबलमें से पूरे छप्पन घोड़े, कड़ी सुरक्षाको धत्ता दे गायब करदिए; फिर दो दिन बादही सशस्त्र सैनिकोसे संरक्षित काठीपुरमके राज-खजानेमें रखे सबसे कीमती चीज़ नीले-हीरे पर हाथ फेर गया"
अब हमें गुप्त-सन्देश आयेहैं ...
श्रृंगार गायब करूँगा
सुहाग गायब करूँगा
अशुभचिंतक 'अज्ञात-खतरा'
"शत्रु बहुत खतरनाकहैं, खुले-आम चेतावनीदे, नाकके नीचेसे इनको अंजाम देताहैं, मेरेभाई कुठारसिंह (काठीपुरमके राजा) ने इसे बहुत हलकेसे लिएथा और बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी।"
पहाड़ोंसे घिरे तीन गौरवमयी राज्य काठीपुरम, मेहरगढ़ और सूरनगर। एकसे बढ़कर एक, जहाँ काठीपुरमको धनाढ्योकी धरती माना जाताथा, वहीँ मेहरगढ़के दुर्गकी पताकाको वीरतासे रंगा गयाथा। सुरनगर गुणज्ञों, मेधावियोंसे अटाथा। तीनोही एक-दुसरेके पूरक, तीनो-भाई हर मुसीबतमें एक-दुसरे के साथथे। उनकी एकताके आगे सभी पड़ोसी राज्योंके हौसले पस्तथे।
बात बाहरवीं शताब्दी कीहैं, करीब पैतीस साल पहले शूरवीर-दिलेर राजा कामेसुकुमारने छोटे-छोटे नगर जीतकर विशालकाय कामेसुगढ़ जरूर बसाया पर चर्चामें सदैव उनका महाकाय हृदय ही रहा। कामेसुगढ़ के राजगुरु मानुबाबा अलौकिक शक्तिधारी दिव्य पुरुषथे। उनकी छाँवमें कामेसुगढ़ पूरे ब्रह्माण्डमें सुरक्षितथा। तरुणावस्थासे ही कामेसुकुमारने अपने राजगुरुके चरण ऐसे पकडे जो उन्हें सिद्धि, समग्रता और सफ़लताकी नोंकपर स्थापित करगए। एक अभागे दिन मानुबाबाने हिमालयमें समाधि लगानेकी कहकर अनिश्चित कालके लिए राज्यसे विदाईली। बीस वर्षो तकतो राजाने प्रजाके दिलो पर राज किया, एक दिवस राजाने घोषणा की वो राजगुरुको खोजने जा रहेहैं। जाते-जाते कामेसुगढ़को तीन नये राज्योंमें बाँट तीनों निपुण पुत्रोको उनका तख़्त संभलागए और इस तरह कामेसुगढ़से तीन नए राज्य काठीपुरम, मेहरगढ़ और सूरनगर बने।
महेंद्रसिंह: "कुठारसिंह और सूर्यसिंह (सुरनगरके राजा) हरवर्ष की तरह इस बारभी मेहरगढ़में शाही-सवारी निकलेगी, जिसमें तीनों राज्योंके राज परिवार शिरकत करतेहैं, लेकिन इस जालसाज-ठगने भयभीत किया हुआहैं।"
कुठारसिंह: "सुरक्षाके पुख्ता इंतजाम किये गएहैं, इस बार उसकी दुर्गति ही यहाँ खींचेगी।"
आभूषणोंसे जड़ी सुसज्जित रानियाँ, राजाओंके साथ राजसी-रथमें, सेनापति-मंत्री हाथियों पर, पीछे-पीछे पूरा कारंवा। जनतामें कुलीनोंके करीब आनेकी होड़ मचीहैं। स्त्री-पुरुष रानियोंकी सुंदरता और राजाओंकी ठाट-बाट, रईशी पर रींझ रहेथे वही बच्चे एक साथ इतने सारे हाथी-घोड़े और ऊँट देखकर विस्मितथे।
"मेरा हार कहाँ गया?" मेहरगढ़की रानी सपकपायी! राज-कुनबेका सबसे श्रद्धास्पद आभूषण जिसे कामेसुकुमार की दादीको उनकी सासने दियाथा यकायक अलोप होगया। बात प्रतिष्ठाकी थी, राज्य प्रवेशमार्गके कपाट बंद कियेगए, घेराबंदी हुयी, एक-एक नागरिककी तलाशी लीगयी, भेदीयोंको लगाया गया। पूरे नगरमें दहशतंगेज़ी फ़ैलगयी लेकिन सुराग नहीं मिला।
इस संकटकालमें तीनो तजवीज़(सलाह) के लिए बैठे।
"जय बाबाबर्फानी! उड़ती हुयी एक बूढ़ी आवाज़ उनके कानोमें प्रतिध्वनित हुयी।
सूर्यसिंह चिल्लाया,'राजगुरु-मानुबाबा' पच्चीस साल बाद, बड़ा ही ख़ुशगवार पल आयाहैं।"
सबके दिल हिलोरें खाने लगा मानों जैसे मेलेमें माँ से बिछुडे बच्चेकी, माँ को देखतेही रुलाई फूट पड़तीहैं।
मानुबाबा: "अपने पूरे जीवन कालमें ऐसे विचित्र भयसे पहली बार सामना हुआहैं। दुश्मन बहुत स्यानाहैं उसके अपराधोंकी संगीनताभी उतनीही विचित्रहैं। मुझे आभाष हो रहाहैं की उसका अगला पड़ाव सूरनगर होगा, कोई भयंकर अहित होनेको हैं। मैं कल सूरनगरमें ध्यान लगाताहूँ। देवने चाहा तो पांचवे पहर सारे रहस्योंसे पर्दा हटा दूंगा।
बिना एक क्षण व्यर्थ किये पूरा रजवाड़ा और मानुबाबा दल-बल सहित सूरनगरको निकले। राजाओंकी आँखोंमें नींद कहाँ! पूरी रात खयालोमें कटती रही। बाबाके भेजे दूतोंने संदेशा दियाकी तीनों राजाओंको सूरनगरके छोर पर स्थित पुराने दुर्ग पहुँचानाहैं वही बाबाने ध्यान लगायाहैं। तीनोको अलग-अलग आनेके लिए कहागया।
महेंद्रसिंह दुर्ग पहुंचे। दुर्गके बिलकुल मध्यमें एक बड़ा स्वस्तिक बनाथा उसके ऊपर बाबा ध्यान मग्नथे। बीचमें विघ्न पैदा करना उचित प्रतीत नहीं हुआ अंदरकी तरफ मशालोंकी रौशनीथी, भीतर जाकर देखा वह कुठारसिंह बैठाथा।
"मैं बहुत उतावला था, रहा नहीं गया और पहले चला आया, लेकिन मानुबाबा तो ध्यानमें है, वहां ऊपर बाबाने एक आदमीको बाँध रखा हैं। लगताहैं वहीँ हैं 'अज्ञात-खतरा'।
दोनों ऊपरको लपके। ऊपर पहुँचतेही, गलेमें घुटी हूंक के साथ महेंद्रसिंह फर्शपर जा गिरा। कुठारसिंह पीछेसे घोपा हुआ खंजर निकालते हुआ बोला, मैंही हुँ 'अज्ञात-खतरा'। महेंद्रसिंह फटी आँखोंसे देख रहाथा, कपकपायी आवाजमें बोला, तुमने ये सब क्यों किया? हमतो भाई हैं"
"कौनसे सगे भाईहैं, तीन रानियोंकी तीन संतानहैं, सौतेलेहैं हम।" मुझे अपना राज्य फैलानाहैं। अगरमें सीधा हमला करता तो तुम दोनों मिलकर मुझे परास्त करदेते। इसलिए मैंने अपने विश्वासपात्रोसे मिलकर ये साज़िश रची। एक राजाका अपनेही राज्यके हीरे-घोड़े गायब करना बहुत आसानहैं। रानीका पुश्तैनी हार भी मैंनेही अपनी पत्नीको बोलकर गायब करवायाथा, सबकी तलाशी हुयी लेकिन राजा-रानी की तलाशी कौन लेताहैं। मैं तुझे और सूर्यसिंह को 'अज्ञात-ख़तरे' की आड़ में मरवाता और फिर तीनो राज्यों पर राज करता लेकिन बीचमें ये बुड्ढा आगया और तेरी ज़िंदगीके बचे दिनभी खागया।
"मानुबाबा तुम्हे नहीं छोड़ेंगे राक्षस"
"वो बुड्ढा मेरा क्या बिगाड़ेगा, उसेतो पांचवे पहरमें पता चलेगा, उससे पहलेमें उसकी गर्दन उड़ादूंगा"
कुठारसिंह, मानुबाबाकी तरफ भागा, बाबा गहरे ध्यानमें, हवामें लहराती हुयी तलवार झटकेके साथ नीचे…
…तलवार नीचे आयी, कुठारसिंहके हाथ समेत नीचे जा गिरी। कुठारसिंहका कटाहाथ तलवारके साथ नीचे पड़ाथा। हथकटे ख़ौफ़ज़दा कुठारसिंहकी तरफ बाबाने लाल-कुपित आँखोंसे देखा, झुर्रियोंमें छिपे होंठ प्रचंड आँखोंका विरोध करतेहुए अट्टहासमें बदलगए। इस अट्टहासमें एकऔर आवाज़ आ मिली। कुठारसिंह पलटा, इस क़हक़हे का स्वामी सूर्यसिंह खड़ाथा। कुठारसिंहकी सारी इन्द्रिया ज़वाब देगयी। उसे मरनेसे पहले जानना थाकी आखिर ये हुआ क्याहैं?
" 'अज्ञात-खतरे' से मेंभी स्तब्धथा, मेने तेरी सारी बातें सुनली। मुझे नहीं पता थाकी तूही वो 'अज्ञात-खतरा' हैं, महेंद्रसिंहको मारकर तूने मेरा आधा काम करदिया 'अज्ञात-खतरे' हाहाहा। शाही-सवारी आयोज़नके दौरान विचार कौंधा की क्योंना 'अज्ञात-ख़तरे' का लाभ उठाकर बरसोसे सीनेमें पलरहे सपनेको पूरा कियाजाए? पच्चीस साल बाद राजगुरु मानु-बाबाको कौन पहचानेगा? हम तीनो तो उस समय बच्चेथे। मैंने अपने एक भरोसेमंदको मानुबाबा बनाया और तुम दोनोंको यहाँ बुलाया। तुम दोनोंको मारकर में लोगोंको कहूँगाकी 'अज्ञात-ख़तरे' ने तुम दोनोंको मारकर बाबाको क़ैद करलिया। तीनो राज्योंकी जनता मुझे राजा मान लेगी, उसके बादमै… " सूर्यसिंहकी बाकी बात अनकही रह गयी, घायल महेंद्रसिंहकी तलवारने उसका सर कलम करदिया। महेंद्रसिंहमें अभी जान बाकिथी, वो लड़खड़ाता हुआ जख्मी कुठारसिंहके पास पहुँचा और गला रेतदिया। महेंद्रसिंह नसोंमें अटकी समस्त प्राणवायु खीँच तलवार लिए नकली बाबाकी और दौड़ा लेकिन गश खाकर वहीं ढ़ेर होगया। दुर्गकी तमाशाई इमारतें अपनी बदक़िस्मती पर रो-रही थी, तीन भाई, तीन राजा, एक-दुसरे पर मरनेवाले, एक-दुसरे को मारदिया। लालचही वो 'अज्ञात-खतरा' था जिसकी कठपूतली बन ये स्वांग रच रहेथे फिर उस लालचने इनकी ज़िंदगीकी डोर खीचली।
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Rating - 153/200
Yahan itne ghatnakramo ne bahut manoranjan kiya. Symbolic image art itne achchhe se kahani se ramti lag rahi hai. Bhasha sundar thi. Kuch jagah shabd anavshyak roop se jude lage. Ek achchhi waapsi ki badhaai aap dono ko.
Total Points after 2 Rounds - 272/400
Judge - Mohit Trendster
Yahan itne ghatnakramo ne bahut manoranjan kiya. Symbolic image art itne achchhe se kahani se ramti lag rahi hai. Bhasha sundar thi. Kuch jagah shabd anavshyak roop se jude lage. Ek achchhi waapsi ki badhaai aap dono ko.
Total Points after 2 Rounds - 272/400
Judge - Mohit Trendster
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