Wednesday, July 31, 2013

Quarter Final # 2 : Deven Pandey vs. Mohit Sharma

*) - Jakhmi wjood

(Deven Pandey) 


‘ तो देखा आपने के किस कदर इन तीन ‘दरिंदो ’ ने अपनी दरिंदगी एक मासूम के साथ दिखाई !
आखिर क्यों ? क्या वजह है के समाज ईस कदर अपनी मानवता खोते जा रहा है ? कब तक हम यु ही खड़े तमाशा देखते रहेंगे ? कब तक मासूम बेटिया दरिंदगी की भेंट चढती रहेंगी ?
मत भूलिये के अगर आज हम खामोश है तो कल को यह आग आपके घर भी पहुँच सकती है !
आपकी खामोशी ही आपकी कमजोरी है !
मानवता पर एक और बदनुमा दाग लगाती ईस घटना के गवाह आप सब है !
सोचिये ज़रा ......... इसी के साथ ‘’ दरिंदगी ‘’ का यह एपिसोड समाप्त होता है !
आज का एपिसोड कैसा लगा यह आप हमें एस एम् एस के जरिये बता सकते है, अनकट एपिसोड्स के लिये ‘लॉग ऑन’ कीजिये हमारी वेबसाईट ‘’ब्रेकिंग न्यूज डॉट कॉम ‘ पर !
कल देखिये किस तरह से अपनों ने ही लूटी एक मासूम की अस्मत ..
मीनाक्षी लेखा , ‘’ दरिंदगी ‘’ के लिये ‘ब्रेकिंग न्यूज ‘

शूटिंग खत्म ही हुई थी के मीनाक्षी का फोन बज उठा
‘हेल्लो , हे ‘लवलीन ‘ व्हाट्स अप ?
लवलीन ( फोन पर रिप्लाई ) : क्या यार ? हमेशा की तरह आज भी लेट ?
मीनाक्षी : क्या करू यार ? आखिर प्रोग्राम भी तो जरुरी है ! ऐसे ही टॉप टी आर पी नहीं
बटोर रहा यह प्रोग्राम .
लवलीन : हा .हा क्यों नहीं ,सारे क्राईम शोज को पीछे छोड़ रही हो तुम , समाज सेवा का ठेका जो ले रखा है मैडम ने , अबला नारी की आवाज जो हो तुम .

मीनाक्षी : व्हाट रबिश ! अबला ? अरे यार यु क्नो इट्ज माई जॉब , माई बिजनेस ! ब्लडी  ‘समाज सेवा ‘

लवलीन : हा हा हा  ओह्ह कम ऑन डोंट एंग्री यार, जस्ट किडिंग ! अच्छा यह बता क्लब कब आ रही है ? हम लोग वेट कर रहे है यहाँ कब से ,
 मीनाक्षी ( हंसते हुये): हाहाहा ,बस आ ही रही हु सीधे वही ,तू फोन रख !
इतना कह के मीनाक्षी ने फोन खुद ही काट दिया ,
अभी फोन कटा ही था के रिंग फिर बजी ...
‘ ओफ्फो यह लवलीन भी ना ....ओह्ह्ह भाई का फोन ‘
आठ घंटे पहले ......
पुलिस स्टेशन में एक अधेड़ व्यक्ति ने प्रवेश किया , उसके साथ में एक युवती थी जिसकी उम्र कुछ अट्ठारह –उन्नीस के आस पास थी !
‘नमस्कार साहब ‘ अधेड़ ने बड़ी ही दयनीय मुद्रा में इंस्पेक्टर की और हाथ जोड़कर कहा ,

‘ हां ठीक है ठीक है ,कहिये क्या काम है ?’ पुलिसिये ने जो के कोई फ़िल्मी मैगजीन पढ़ रहा था ,  उस अधेड़ पर अहसान सा करते हुये कहा .
‘ साहब , यह मेरी बिटिया है ‘काजल ‘  अधेड़ ने युवती की और देखते हुये कातर भाव से कहा.
‘हम्म ‘ पुलिसिये ने सर से पाँव तक युवती को स्कैन कर लीया , और उसकी नजरे युवती के अस्तव्यस्त हुये दुपट्टे से झलकते सीने पर जा चिपकी , उसने झट से मैगजीन एक और रखी और अपनी बैठने की मुद्रा ठीक की !
लडकी ने उसकी नजरो को अपने वजूद पर चुभते हुये महसूस किया और अपना दुपट्टा बड़ी ही शालीनता से संवारा .
‘हां तो समस्या क्या है आपकी ?’ इंस्पेक्टर ने बेरुखी से कहा , नजरे अभी भी लडकी की और ही थी और वह आँखे झुकाये खड़ी थी !
‘’ जी साहब बात दरअसल यह है के मेरी बेटी ‘ अग्रवाल ‘ कॉलेज में पढ़ती है !
कुछ दिनों पहले ही एडमिशन हुवा है , कॉलेज में  एक लडका है जो मेरी बेटी को छेड़ता
है , गन्दी गन्दी फबतिया कसता है ,
‘ तो इसमें इतना टेंशन नई लेने का , होता है यह सब यही तो कॉलेज लाईफ है अंकल ,बेटी को इंजॉय करने दो ! यही तो उम्र है इंजॉय करने की ‘ इंस्पेक्टर ने बेपरवाही से कहा.

‘ नहीं साहब , आप जो समझ रहे है बात वह बिलकुल भी नहीं है ! वो लडके आये दिन छिछोरी हरकते करते रहते है मेरी बेटी के साथ ,
‘ तो प्रिंसिपल से जा के मिलो ना ...यहाँ क्या करने आये हो ? स्टूडेंटस को सम्भालना उनका काम है, हमारा नहीं ‘ इंस्पेक्टर ने अपनी वही शैली अपनाई ,
‘वे स्टूडेंट नहीं है साहब वे शैतान है , बात सिर्फ यहाँ तक थी तो ठीक ठाक थी लकिन उस दिन तो उन लडको ने हद पार कर दी ‘
‘’ मतलब फुल एंड फाईनल कर ही दिया क्या ?’’ इंस्पेक्टर ने कहा तो अधेड़ सकपका गया !
‘ नहीं साहब आप जैसा समझ रहे है वैसा कुछ भी नहीं हुवा है ,आप मेरी बात तो सुनिये ‘
‘ओह्ह्ह ,अच्छा चलो बताओ लेकिन जल्दी हां , अभी लंच करने जाना है ‘ ईस बार फिर से उसकी नजरे लडकी पर थी .
और लडकी जितना उसकी नजरो से बच सकती थी उतना वह बच रही थी अपने पिता की आड़ लेकर .
‘ उस दिन हमेशा की तरह मेरी बेटी कॉलेज से आ रही थी तो उन लडको ने बिच रास्ते में ही उसका हाथ पकड़ लिया , और उसे अपने साथ चलने को कहा , मेरी बेटी ने उसे धक्का दिया तो उस लडके ने उस पर हाथ उठा दिया , जिस वजह से उसे काफी चोट भी आई ,’
‘ ओह्ह्ह तब तो हमको जख्म देखना होगा , बिना देखे ईस बात की पुष्टि कैसे होगी ? ‘ मक्कारी बहरे लहजे में उस पुलिसवाले ने कहा .
‘ साहब चोट दिखा नहीं सकता अप समझने की कोशिश कीजिये ,’
‘ चलिए आप कहते है समझ लेते है , हां उसके बाद क्या हुवा ? क्या आप उन लडको से मिले ?’
‘जी हां मै उनसे मिला , और उनसे ईस बाबत जवाब माँगा तो उन्होंने मुझे पिटा और मेरे साथ बदतमीजी भी की ‘ अधेड़ के चेहरे पर अब बेबसी के भाव थे .
‘ मतलब बेटी के साथ साथ बाप की पिटाई भी फ्री ‘ पुलिसिये के इतना कहते ही वहा मौजूद मातहत हंसने लगे ,
‘क्यों हंस रहे है आप सब ? क्या बात हुयी ऐसी ? एक बुढा बेबस व्यक्ति यहाँ अपनी फ़रियाद लिखने आया है और आप सभी उसकी बेबसी का मजाक उड़ा रहे हो ? आपको शर्म नहीं आती ?’ युवती ने अपना सारा गुस्सा निकालते हुये लगभग चिल्लाते हुये कहा ,
पुलिस स्टेशन एक पल के लिये निस्तब्ध हो गया ,
‘ ऐ लडकी यहाँ चिल्ला मत समझी यह तेरे बाप का घर नहीं है , पुलिस स्टेशन है ‘ पुलिसिये ने बिफरते हुये कहा .

‘ साहब इसकी तरफ से मै माफ़ी मांगता हु , माफ़ कर दीजिये बच्ची है नासमझी में बोल गई साहब ‘  बूढ़े ने हाथ जोड़ते हुये कहा ..
‘ और तू भी चुप रह ,मै बात कर रहा हु ना ‘ बूढ़े ने बेटी को लगभग डांटते हुये कहा
‘’ ठीक है ठीक है, चलो नाम बताओ उस लडके का जिसने तुम्हारी लडकी को छेड़ा है ‘
‘ जी उसका नाम ‘जुगल प्रभाकर ‘ है साहब और उसके साथ सात लडके और रहते है हमेशा ‘
‘ जुगल प्रभाकर ?????? क्या आप ‘’नविन ‘ जी के बेटे की बात कर रहे है ?’
‘जी साहब ‘
‘ अबे जानता है तू किसपर तोहमत लगा रहा है बुड्ढे ‘ इंस्पेक्टर का लहजा अचानक कड़ा हो गया .
बुढा और उसकी बेटी सन्न रह गये .
‘उसका बाप ‘सांसद ‘ है ईस इलाके से , वे इतने भले आदमी है और तू उनपर इल्जाम लगा रहा है ओह्ह्ह अब समझा मै सारी बात ‘’
इंस्पेक्टर लगभग दांत पिसते हुये बोला ...
‘क्या कहना चाहते है आप इंस्पेक्टर ‘ लडकी ने अपनी हिम्मत जुटा कर कहा .

‘ तुम दोनों बाप बेटी उस भले मानस पर कीचड़ उछालकर पैसे कमाना चाहते हो ? हे भगवान इंसानियत कितनी गिर गई है एक बाप पैसो के लिये खुद अपनी बेटी को इस्तेमाल कर रहा है ‘
‘जुबान को लगाम दो इंस्पेक्टर ‘ बूढ़े ने कहा ..
चटाक ....
और बूढ़े की कनपटी सुर्ख हो गई इंस्पेक्टर के चांटे से ,
‘बाबा ‘ लडकी चीख उठी और अपने पिता को सम्भालने दौड़ पड़ी .
‘उठा अपने बाप को और लेकर चलती बन यहाँ से वरना धंधा करने के आरोप में अन्दर बंद करवा दूंगा तुम दोनों को चल निकल यहाँ से ‘
बुढा और उसकी बेटी वहा से निकल गये , बूढा अपमान का घूँट पीकर रह गया .
दरवाजे पर खड़े हवलदार ने बूढ़े से कहा .
‘ अंकल जी यहाँ सर टकरा कर आपको कुछ नहीं मिलनेवाला , वह लड़का संसद का बेटा है और उसकी और से यहाँ हर हफ्ते मोटी रकम आती है , इसलिए यहाँ कोई आपकी फ़रीयाद नहीं सुनेगा .
‘ मै चुप नहीं रहूँगा , ‘ बूढ़े ने कहा ......
उसी वक्त किसी और जगह पर .....

‘अबे यार जुगल ,चल आज मूड बना है चलते है ‘ समीर ने कहा ,,,समीर जो के अपने पहनावे और रहन सहन से ही किसी रईस बाप की बिगड़ी औलाद दिख रहा था ,
‘ अबे साले अभी ठीक से शाम तो होने दे , तू तो आज बड़ा बेसब्र हो रहा है क्या बात है ? जुगल ने कहा !
‘ अबे कुछ नहीं यार बस मन था और क्या , देख नहीं रहा क्या ? बारिश हो रही है कब से और हम साले तेरे फ़ार्म हॉउस पर बैठे पक रहे है ‘ समीर ने कहा,

‘ ह्म्म्म समीर सही कह रहा है चलो यार यहाँ बैठ कर पिने में कोई मजा नहीं है ,क्लब चलते है कुछ बढ़िया नशा करते है यार , अब ईस व्हिस्की में दम नहीं रहा ‘ डेनियल ने कहा जो उन्ही का साथी था ..
उसके कहते ही सभी हंस पड़े .
सात बिगडैल दोस्तों का ग्रुप , जो कॉलेज में छंटे हुये माने जाते थे , सभी साधन सम्पन्न परिवार से थे पैसो की कोई कमी नहीं थी ! ऐसा कोई शौक नहीं जो उन्होंने ना पाल रखा हो ! उनके जलवे कॉलेज में हर ओर थे !
उन सभी की लाईफस्टाईल स्टूडेंट्स के लिये जलन की चीज थी ! और उन्ही में से एक था ‘समीर ‘ जिसने कुछ महीनो पहले ही कॉलेज ज्वाइन किया था !
बस फिर क्या था जान पहचान हुयी और वह भी ईस ग्रुप का हिस्सा बन गया ! बस अब पढाई कहा से होती ?
क्या लाईफ थी यह ....? रोज क्लब जाना , डी जे के कानफाडू म्यूजिक पर नशे में धुत्त होकर डांस करना , आधी रात को सिटी हाईवे पर बाईक्स की रेसिंग करना , लडकियों के साथ छेड़ खानी करना, आये दिन कोई ना कोई कानून तोड़ना तो अब आम बात हो चुकी थी !
आखिर दोस्त का बाप सांसद जो था , तो कौन सजा देता , राते रंगीन और दिन गुलजार होने लगे ,घरवाले मोडर्न सोच के थे तो बहार आने जाने पर भी कोई दिक्कत ना होती थी , महीने दो महीने में ‘गोवा ‘ जाना तो जैसे नियम बन चुका था ,
उस दिन ‘जुगल ‘ का जन्मदिन था ,इसलिए फ़ार्महॉउस जाने का प्लान था !
लेकिन वहा मजा नहीं आया तो सभी निकल लिये क्लब की ओर !
आठ दोस्त दो वैगन में सवार ,,,,,

ड्राईविंग पर ‘समीर ‘
क्लब में पहुंचे तो माहौल उफान पर था ! कदम तेज म्यूजिक पर थिरकने लगे ,बोतले खाली होने लगी ,
उसी वक्त , स्थान : ब्रेकिंग न्यूज का ऑफिस ‘
‘मीनाक्षी मैडम आपसे कोई बुजुर्ग मिलने आये है ‘
‘’ ओफ्फो क्या यार ? उनसे कहो के मै बीजी हु ‘

‘ कहा था लेकिन उन्होंने अपना नाम ‘ प्रकाशराज ‘ बताया था और कहा था के आप उन्हें जानती है ‘
‘ प्रकाशराज ? ह्म्म्म अच्छा भेजो उन्हें ‘
कुछ देर बाद एक अधेड़ व्यक्ति ने वहा प्रवेश किया ,मीनाक्षी की नजरे उसे ही देख रही थी !
‘ मीनाक्षी बेटा , पहचाना मुझे ? मै तुम्हारा क्लास टीचर , याद है ना ? ‘ बूढ़े ने चहकते हुये कहा ,
‘ आपको कैसे भूल सकती हु सर ‘ मीनाक्षी ने बनावटी मुस्कान के साथ कहा ,उसे कोफ़्त होने लगी थी ,आखिर ‘लवलीन ‘ के साथ क्लब जाने का वक्त हो रहा था ,
‘ बेटा तुम बड़ा अच्छा काम कर रही हो ! मै जब भी तुम्हे टीवी पर देखता हु मेरा सीना चौड़ा हो जाता है ‘
‘ जी सर ,अच्छा आज आप कैसे यहाँ आ गये ? ‘ मीनाक्षी ने टालने की गरज से कहा ,
‘बेटा मेरी एक परेशानी है ,मै सब जगह जाकर आ चूका हु लेकिन मुझे निराशा ही हाथ लगी है ,मुझे उम्मीद है के तुम मेरी मदद कर सकती हो बेटा ‘ बुढा दिन हिन् सा बोला
‘ जी कहिये मै क्या कर सकती हु ‘ मीनाक्षी हथियार डालते हुये बोली ,सच तो यह था के उसे बूढ़े की मौजूदगी बिलकुल भी रास नहीं आ रही थी ,

‘ बेटा मेरी बेटी मुसीबत में है , एक संसद का लडका उसपर बुरी निगाह रखे हुये है ,मैंने ईस बाबत पुलिस में भी शिकयात की थी लेकिन उन्होंने मुझे धक्के मार कर निकाल दिया ,मेरी बेटी पर और मुझ पर ही तोहमत लगा दी के मै और मेरी बेटी ‘धंधा ‘ करते है ‘ आखिर मै कहा जाऊ ? किसके पास अपनी शिकायत दर्ज कराऊ ? वह दिनदहाड़े धमकी देता है के मेरी बेटी को उठा ले जायेगा ,
बुढा फफक पड़ा ..
मीनाक्षी का फोन बज उठा ....
‘अरे बाबा आ रही हु ना ? क्या बार बार रिंग कर रही है ‘ मीनाक्षी ने फोन पर झुझलाते हुये कहा .
फिर वह बूढ़े से मुखातिब हुयी .

‘जी कहिये मै इसमें आपकी क्या मदद कर सकती हु ?’
‘ मै तुम्हारा प्रोग्राम देखता हु बेटा , मै चाहता हु उसमे तुम यह मुद्दा उठाओ , मेरी बेटी को चैन से जीने का हक़ दिलवाओ ,इसमें सिर्फ तुम ही मेरी मदद कर सकती हो ‘
‘’देखिये अंकल , एक बात आपको समझनी चाहिये मेरा प्रोग्राम सिर्फ बलात्कार , सामूहिक बलात्कार ,जैसी घटनाओं को ही कवर करता है ! मामूली छेड़छाड़ की घटनाओं को नहीं ,
मीनाक्षी ने बिना किसी लागलपेट के दो टूक कह दिया ,
‘लेकिन बेटा यह मामूली छेड़ छाड़ नहीं है उन्होंने जबरदस्ती करने की कोशिश की है ‘
‘ ओफ्फो आप समझते नहीं है ,हमारा प्रोग्राम सिर्फ ‘बलात्कार ‘ को ही दिखाता है ,और आपकी बेटी का बलात्कार नहीं हुवा है अभी ‘
बुढा संन्न रह गया यह जवाब सुनकर ..
‘ आप समझिये बात को ,शो की टी आर पी का यही तो राज है ,लोग बलात्कार देखना चाहते है , उन्हें वह अपराध नहीं मनोरंजन लगता है !
‘ इसका मतलब जब तक मेरी बेटी का बलात्कार ना हो तब तक वह तुम्हारे लिये खबर नहीं है ?’
‘ नहीं ‘ दो टूक जवाब ...
बूढ़े के सब्र का बाँध टूट गया .....
वह खुद को सम्भाल नहीं पाया और मीनाक्षी के पैरो में गिर पड़ा !
‘ मेरी मदद करो मीनाक्षी ,तुम मेरी बेटी समान हो मुझ पर अहसान ही कर दो ! एक लाचार बाप तुमसे दया की भीख माँगता है ‘
‘ओफ्फो एक तो मुझे वैसे ही लेट हो रहा है और ऊपर से यह नौटंकी, सिक्योरिटी !!!!!!!!!!!!’

और बूढ़े को को धक्के देकर निकाल दिया गया ..वह गिडगिड़ाता रहा रोता रहा ,लेकिन मीनाक्षी पर कोई असर नहीं हुवा ,वह अब फोन पर थी !
किसी दूसरी जगह पर
‘’मजा आ गया यार जुगल  ‘
‘ लेकिन समीर असली मजा तो तब आयेगा जब कोई लडकी साथ हो ‘ जुगल ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा !
ईस वक्त वे सभी क्लब से बाहर निकल रहे थे !

‘ क्यों ना यार कोई ‘कॉलगर्ल ‘ हायर कर ले ? एक दोस्त ने कहा ,
‘ अबे यार तुम लाग भी ना रहोगे साले फट्टू के फट्टू ,अबे ‘कॉलगर्ल ‘ भी कोई मजे की चीज है ? उसमे मजा कहा , ‘ जुगल ने कहा ,उसकी आँखों में तैरते लाल डोरे उसपर सवार वासना साफ़ उजागर कर रही थी !
‘  तो तुम क्या चाहते हो जुगल ? इसके अलावा और क्या ऑप्शन है ?’
समीर ने कहा ,
‘तू चल,पीछे वाली गाडी में बैठ ,और तुम तीनो इसके साथ रहो बे , और बाकी के हम चार अगली गाडी में बैठते है ,चुपचाप साथ चल कोई जुगाड़ कर लेते है रस्ते में ‘
जुगल किसी निर्णय पर पहुँच चूका था ,

सभी गाडी में बैठे , समीर काफी खुश लग रहा था ,उसकी धडकने तेज थी ,
वह गाडी की ड्राईविंग सीट पर बैठा और गाडी ‘जुगल ‘ के वैगन के पीछे चल पड़ी ,
फोन का ब्लूटूथ ऑन था जिस से जुगल ,समीर से कनेक्टेड था !
गाडी रास्ते पर दौड़ रही थी , समीर और जुगल रास्ते में आती जाती लडकियों को वासना भरी निगाहों से देखते रहे ,
मन में आते समीर ने गाडी के बाहर सर निकाल कर एक लड़की पर अश्लील फब्ती कस दी ,लडकी तमतमा कर रह गई ,
‘हेल्लो समीर ,मेरी बात सुन आगे के मोड़ पर एक आईटम नजर आ रही है , बड़े मोडर्न कपड़े पहन रखी है एकदम पटाखा है यार मिल जाए तो मजा आये क्या बोलता है ? उठा लू ?’
जुगल की ईस बात से समीर के बदन में झुरझुरी दौड़ गई ,

‘कैसी बात कर रहा है यार ? ऐसे कैसे किसी को भी रास्ते से उठा लेंगे कोई देख लिया तो ?’
आखरी सवाल में छिपी हामी को जुगल ताड़ गया था ,

‘डोंट वरी यार ,वैसे भी लडकी मोडर्न दिख रही है यार ,लगता है गाडी कही खराब हो गई है उसकी और उसे क्या ऐतराज होगा यार उसे भी मजा आयेगा , और वैसे भी गाडी के नम्बर्स वाले लाईट्स तो बंद है अपने कोई नहीं पहचानेगा ,रास्ते पर भी कोई दूसरी गाडी नहीं दिख रही है कही ,बोल जल्दी गाडी उसके सामने आ रही है अपनी , क्या बला है यार कसम से मेरा ईमान तो पल भर में डोल गया है ‘
जुगल ने उत्तेजित होते हुये कहा ..
‘ऊ उठा ले ‘ समीर ने अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुये कहा ,

और गाडी लडकी के पास रुकी ,जुगल ने खिड़की से सिर निकला और उस लडकी को आवाज दी ,
‘ एक्सक्यूज मी मिस ,क्या आप बता सकती है के ‘शास्त्री कॉलोनी’ कहा है ?
‘जी वो ..’ कहने के लिये लडकी आगे बढ़ी ,और बस यही गजब हो गया ..

कुछ समझने से पहले ही गाडी का दरवाजा खुला और चार हाथो ने लडकी को दबोच लिया .गाडी का दरवाजा बंद हो गया ,

समीर अपनी गाडी से यह दृश्य देखता रह गया , लडकी का चेहरा तो नहीं देख पाया वह लेकिन उसका फिगर देख के ही समीर उत्तेजित हो गया था !
गाडी चलती रही , और अन्दर हैवानियत का खेल चलता रहा ,बारी बारी से जुगल ,और उसके साथियो ने अपनी हवस मिटाई ,लडकी तड़पती रही ,चीखती रही ,दया की भीख मांगती रही लेकिन स्टीरियो की आवाज में चखे दब गई !

दया की उम्मीद खूंखार जानवरों से नहीं की जाती ,और ईस वक्त वे चारो जानवर ही थे ,इंसानी खाल ओढ़े हवस के भूखे भेडिये,
एक जगह पर गाडी रुकी ,
समीर अपनी बारी का इन्तेजार कर रहा था , जुगल गाडी से बाहर निकला और समीर की तरफ निकला .
‘समीर तुम हमारे ग्रुप के नए मेम्बर हो इसलिये तुम्हारा नम्बर बाद में आयेगा पहले तीनो को जाने दो ‘ जुगल ने फैसला सुनाते हुये कहा ,
‘ओके कोई बात नहीं ,मै आराम से निपट लूँगा हेहेहे ‘ समीर ने हंसते हुये कहा तो तीनो साथी गाडी से उतर कर आगे वाली गाडी में चले गये ,

कुछ देर बाद सभी वापस आ गये , अब बारी थी समीर की !
समीर को अपनी धडकनों को काबू करना ईस वक्त दुनिया का सबसे मुश्किल काम महसूस हो रहा था , वह गाडी की ओर बढा,और वहा जुगल ने अपनी गाडी आगे बढ़ा दी !
‘बेस्ट ऑफ़ लक समीर ‘ जुगल ने थ्ब्स अप करते हुये कहा ,तो समीर के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कराहट फ़ैल गई !

अब समीर गाडी में था , गाडी चल पड़ी थी पूरी रफ्तार पर ,लडकी उसके सामने पड़ी थी निढाल सी , उसकी साँसे तेज चल रही थी , सीट पर खून के धब्बे साफ़ दिखाई दे रहे थे ,
लेकिन हवस के लाल डोरों के आगे समीर को उस खून की लाली दिखाई नहीं पड़ी ,

लड़की के चेहरे पर उसके कपडे पड़े हुये थे , उसका चेहरे को छोड़ बाकी शरीर लगभग अनावृत्त था ,जिस वजह से समीर की उत्तेजना बढ़ गई थी ,उसने अपना शर्त उतारने में पल भर की भी देर नहीं की ,
और अगले ही पल वह लडकी के पास था ,उसने उसके दोनों हाथो को पकड़ा ! लडकी की प्रतिकार करने की क्षमता खत्म हो चुकी थी , उसने घुटी सी आवाज में कहा ..

‘मुझे छोड़ दो ,जाने दो मुझे ‘ लेकिन उसकी ईस बारीक सी आवाज को समीर ने अनसुना कर दिया ,
और उसने उसके मुह से कपड़ा हटा दिया ......

बस इसी पल ...एक जोरदार बिजली सी गिरी समीर के वजूद पर ..
‘न नहीं ‘ एक चीख सी निकल गई उसके कंठ से ,,
उसकी अंतरात्मा तक कांप गई ...उस लडकी का चेहरा देख कर ..
‘मीनाक्षी .मीनाक्षी लेखा ‘
समीर की सगी बहन .....

उफ्फ्फ ,,,,,,समीर जड़ हो गया ,
‘आह मुझे जाने दो ,’कहते हुये मीनाक्षी ने आँखे खोली ..
और वही जैसे कयामत हो गई ...
‘मेरा भाई ? म म मेरा भाई ..न नहीं ‘

अब तक उसका शरिर जख्मी था ,आत्मा जख्मी थी ,अब उसका वजूद चोटिल था ‘
उसने एक झटके में फैसला लिया और ईस से पहले के समीर समझ पाता ‘मीनाक्षी ‘ ने गाडी का दरवाजा खोल दिया और चलती गाडी से छलांग लगा दी ...

उसका बेजान सा शरीर पथरीली सडक पर लुढकता चला गया ...

‘ मेरी बहन नहीं रही , सब मेरी वजह से ,यह मैंने क्या किया ? ‘समीर की अंतरात्मा उसे धिक्कार रही थी !
‘नहीं मै माफ़ी के लायक नहीं ,मेरा कोई प्रायश्चित नहीं , मुझे जीने का कोई हक़ नहीं और ना ही इन सबको जीने का हक़ है ‘ कहते हुये जुगल ने ड्राईविंग सीट पर बैठे डेनियल पर छलांग लगा दी ..डेनियल जो के यह सब देखकर हतप्रभ था ,उसके कुछ समझने के पहले ही समीर का पैर एक्सीलिरेटर पर पड़ चुका था ,गाडी अपनी गति से अधिक तेज होक दौड़ पड़ी ..
और सीधे ‘जुगल ‘ की वैगन से टकराई ..

भडाक......
और जुगल की वैगन अपनी लेंन तोडती हुयी ,सामने आते कंटेनर से टकरा गई , वैगन के परखच्चे उड़ गये ,,,,,,,

और उसमे बैठे सभी दरिंदो के भी ....
लेकिन समीर इतने पर भी नहीं रुका डेनियल उसको  रोकने की कोशिश करता रहा ,
लेकिन समीर पर पागलपन सवार था , उसने तेजी से गाडी मोड़ी और गाडी सीधे ब्रिज की बाउंड्री तोड़ते हुये पार हो गई ....
भडाक  ...........

और गाडी ब्रिज से निचे सीधे पथरीली पहाडियों पर गिर कर चकनाचूर हो गई ....
समीर का पागलपन खत्म  हो गया ,,क्योकि अब समीर भी खत्म हो चुका था .....
दो घंटे बाद ,हॉस्पिटल में
‘आह ,,’ एक कराह के साथ मीनाक्षी ने आँखे खोलने की कोशिश की ,लेकिन
नहीं खोल पायी ,,,उसके कानो में किसी की आवाज पड़ रही थी ..

‘ देखिये माना के आपने इन्हें सही समय पर अस्पताल भर्ती करा दिया ,लेकिन इनकी हालत इतनी नाजुक है के इनका बचना मुश्किल है , हमने पूरी कोशिश कर ली है ,लेकिन इन पर उपरी चोटों के अलावा अंदरूनी चोट भी है काफी , बस हम ईस से ज्याद कुछ नहीं कर सकते ‘

मीनाक्षी ने पूरी ताकत लगकर आँखे खोली ,यह जानने के लिये के उसे किसने चंद घंटो की जिन्दगी दी ....
जब उसकी नजरे देखने की अभ्यस्त हुयी तब सामनेवाले शख्स को देख कर उसकी आँखों से आंसू की दो बुँदे गिर पड़ी ..और इसी के साथ उसने अपनी आखरी सांस ली ‘
‘ वह कोई और नहीं वही बुढा था , प्रकाश राज ‘
उसकी आँखों से भी ‘बुँदे ‘ छलक पड़ी ...
अगले दिन ..

‘’ ब्रेकिंग न्यूज ‘’ चैनल पर आप देख रहे है हमारा प्रोग्राम ‘ दरिंदगी ‘
तो देखा आपने किस तरह से कल रात हमारी प्रवक्ता ‘ मीनाक्षी लेखा ‘ शिकार हुई एक जघन्य  वारदात का .....पुलिस के अनुसार ईस वारदात में शामिल सभी अपराधी सडक दुर्घटना में मारे जा चुके है !

समाप्त ....?
Rating - 43/100
Judge's Comment
 
A good simple narrative, some primitive stereotyped-twists predictable at its best! topic is a social issue narrated with events and scenes very common in literature and non-literary works of art, but plotted against the more extreme issues a society can face that is sexual-encounter between sister and brother of same blood which remains a unexploited point against the context of forced-sex/rape/balatkaar and the resulting mental response ! the plot , purpose and morals of the story is told by assuming that the progression of events (common to reader's knowledge of its working and context in current) tells it on its own , but in reality they remained untold by the writer with the treatment with a more clear and sound arguments , and shows a lack of novel way to deal it in literary writings ! the plot is about the social responsibility of every social member (narrated quite well), another in the context of issue around rape, another class-difference resulting in social and physical exploitation and violence, the last one plotted as the result the accidental sexual encounter between a brother and sister which misses the point blank -the rape is all about sexual pleasure in a specific cultural context! Certainly you got it right that rape can happen to anyone and you told it in simple thorough way, but your narrative is kind of linear set against one plot without exploring the possibilities and threads of tragedy it contains- tragedy is really a big genre and not just an awkward unexpected accident told! In other words, every unexpected or expected accident cannot be tragedy they need to be tragedies by the writer ! though story is about the current social issues it lacks the originality created with/and within that by the writer either by raising issues previously unrecognized or narrating the story to not settle things but to unsettle them! Numbers are given for the simplicity the story keeps run!

 
“Erectile Dysfunction Bitches !” (18 +)

(Mohit Sharma)

*Mature Content 
14th Century Asian Era/Backdrop

Kabhi bade shetra aur kuch desho mey faila hua Yabari Dharm ab ek chhote desh Revanda tak simat kar reh gaya tha. Jiski wajah tha apne dharm ki aad lekar chhote rajyo ko hatiya raha Zehrab desh ka mool Shashak Illumnaat. Uske andhe samarthak (jinki samkhya sainik varg mey adhik thi) kisi tark ko nahi maante the aur chahte the ki duniya ka har vyakti sirf unka hi dharm Jirawo apnaye.

Doosre dharmo k Dharm Guruon ko Illumnaat ke isharo par ya to unke prabhav shetro se bhagaya jaa raha tha, khaareda jaa raha tha ya maara jaa raha tha. Illumnaat ye chhadm sandesh failana chahta tha ki Jirawo k alawa sabhi dharmo aur Zehrab shashit rajyo k alawa sabhi rajyo mey arajakta, paap ka mahaul tha aur Jirawo paalan karne se hi in buraiyon se bacha jaa sakta tha.

Illumnaat ka mukhya salahkaar Vardah ek kutil vidhvaan tha jo dharmo aur rajyo ka achchha jaankar tha. Wo aur Illumnaat jaante the ki janta ko kisi Ishwariye Prateek se hi daraya jaa sakta hai aur us Bhagwan ki aad mey apne mann ka kaam liya jaa sakta hai. Halanki, Illumnaat ki nitiyan chhadm thi par dharm guruon mey ye sandesh jaa chuka tha ki unke virudh gehra shadiyantra chal raha hai.

Yabari k sabse bade Dharm Guru Yabanov bhi ek sabha mey apni simat rahi pariniti par chintan mey doobe the, ki tabhi unki sabha mey ek yuva shishya ne sawal rakha.
“Mahan Yabanov! Dharm k naam par aaj tak bas maar-kaat hi dekhi hai. Kya sirf yahi dharm ka maksad hai? Agar aesa hai to Nastik log kisi bhi dharm ko maanne waalo se behtar aur shaanti priye hue?”

Yabanov muskuraye, unhe us yuva shishya ki imaandaar jigyasa achchhi lagi kyoki aksar ya to unhe Yabari dharm k liye ladne marne ki baat karne wale samarthak milte the ya unke auhde k darr se aesi jigyasayen hote hue bhi naa puchhne wale samarthak jo unko hi Bhagwan ka roop maante the.

Yabanov – “Shaanti aur vyavhar ka dharmik hone ya na hone se zyada vyakti ki parvarish par nirbhar karta hai. Kisi dharm ki neev galat nahi hoti. Galat hote hai uska apne matlab anusaar arth nikal kar dushprachar karne waale bade neta, pracharak aur dharm guru. Samay k saath dharm ki wo pavitr neev to kahin bhula di jaati hai par Upar waale k naam se darne wale kuch anuyayi bach jaate hai jo adhure gyan k saath aur sadiyon se chali aa rahi galat paramparaon ki raksha k aadambar mey jeevan k asli udeshyon se bhatak kar arajakta failate hai, paap karte hai.
Dharm logo ko sangathit karne ka ek zariya hai. Ab ye sangathit shakti sahi disha mey jaati hai ya galat ye is par nirbhar karta hai ki wo dharm sadiyon ki jhuthti paramparon par tika hai ya shuruat se bani uski neev par jo samay k saath manavta k vikas k liye khud mey badlaav hone layak lacheelapan rakhti hai.”

Yabari dharm ka ek baar phir se badhta daayra Illumnaat k saamne chunauti pesh kar raha tha. Salahkaar Vardha bhi is shaanti priy dharm k badhte prabhav ko rokne k paksh mey tha kyoki dharm ka jo hathiyaar Illumnaat isteymaal kar raha tha wo kisi aur dharm k badhne par kunnd pad sakta tha. Yabari k badhne ki mukhya wajah Yabanov the jo dharm prachar karne k liye aksar apne rajya ki seemao k paas shivir lagate the jinme bhaari bheed jut ti thi aur unhe badi sankhya mey naye Yabari anuyayi milte the.

Ek seemavarti gaon mey aese hi shivir k dauraan padosi rajya ka ek doot sandesh laya ki Illumnaat ki aakramak nitiyon par yojna banane k liye bache hue kuch chhote dharmo ke adhyaksho aur mukhya anuyayiyon  ki ek gupt sthaan par saiyukt baithak hai. Yabanov apne darjan bhar prabhavi santo aur purohito ko saath lekar Yabari dharm ka pratinidhitva karne us rajya mey nishchit gupt sthaan par pahunche jahan unhe kuch aur dharmo k astitva k liye sangharsh kar rahe dharm guru aur mahant-purohit, anuyayi mile.
Sabha shuru hui sab upasthit hastiyon ne apni yojnayen aur nitiyan samooh k saath baanti. Yabanov ne bhi aane wale samay k liye apni nitiyan baithak mey sabhi ko batayi. Abhi baithak chal hi rahi thi ki us sabha par naqabposh sainik tukdi ka hamla ho gaya jisme sabha k bahut se sadasya mare gaye. Sainik se sant bane Yabanov ne us baithak k sadasyon ki raksha k liye talwar utha li par hamlavaro ki sankhya zyada thi jiski wajah se thode sangharsh k baad unhe andhere mey bhaagna pada. Pata chala ki us padosi rajya k shashak aur dhram guru ko Illumnaat ne khareed liya tha aur ye bache hue dharm guruon ki sabha karva kar unki hatya karvane ka shadiyantra usi ka tha.

Zakhmi Yabanov ne apne saath bhaag kar bache logo ko dekha to unme Yabari k 6 sant aur anuyayi, Prentak Dharm k ek Dharm Guru Swahil, 3 Prentak sant aur unka wo yuva poorv-shishya jo ab Nastik ban chuka tha aur sabha mey aastik logo k tabke ka pratinidhitva kar raha tha bache. In sabne jungle se sate ek gaon mey sharan li.

Yabanov ko paristhiti anusaar apni niti mey badlaav karne pade. Ab unhe bhi chhadm rehkar apna dharm prachar karna tha. Unke aade aa rahi thi ek cheez ki jab koi chhup kar rehta hai to uska dushman uske bare mey lagataar afwahen faila sakta hai jinme se har kisi ka jawab dena sambhav nahi…..jawabo k abhaav mey samarthako mey sandeh badhta hai aur samay k saath wo doosre dharm ya neta ka rukh kar lete hai. Illuminaat ke failaye dhongi netao, Guruon ki afwahon ne janta mey sandeh k beej bo diye the.
Yabanov aur Swahil k dharm alag the par vichar mel khaate the. Dono mey aadhyatmik vishyo aur apne anubhavo par lambi baat-cheet hoti thi. Ek doosre k liye dono ka samman badh raha tha. Yabanov k paas apne dharm ka pavitr pracheen granth tha jo har peedhi k saath mukhya dharm guru ko di jaati thi. Yabari logo ki is kitaab aur apne mukhya dharm guru mey aseem shraddha thi. Manyata thi ki ye kitaab jab tak surakshit rahegi tab tak Yarabi Ishwar apne anuyayiyon par kripa rahegi. Chhoti afwahon ka asar logo par utna nahi hua par Yabanov ki anupasthiti mey ek badi afwah failayi gayi ki Yabanov ne ek veshya k saude mey ye pavitr kitaab doosre dharm k hawale kar di jinhone ye kitaab milte hi isko jala diya.

Yabanov tak jab ye baat pahunchi to unhone nishchay kiya ki wo apni gatividhiyan badhate hue sthaniye melo, gram sabhao mey apni jaan ka jokhim lete hue Pavitr Kitaab k saath logo k saamne aayenge. Unke poorv shishya Fromos jo us dal mey ekmatr nastik tha ne unhe sujhav diya ki kitaab ki pratilipiyan banakar rakhen taaki agar kitaab nasht ho jaaye to janta ka vishwas bana rahe aur jahan Yabanov na jaa paye wahan unke shihsya-sant pratilipiyan lekar jaaye. Din beete aur Yabanov ne pavitr kitaab ke saath abhi kuch hi jagah darshan diye the ki ek raat unhone shor suna.

Unhone mashalon ki roshni mey dekha ki Prentak k ek anuyayi ko Fromos maar raha tha uske aas-paas hi kuch lashen padi thi jinki shinakht mushkil thi. Yabanov ne chinta mey idhar udhar dekha unhe dekh kar raahat mili ki Swahil zinda the aur saath hi unke shivir mey so rahe 2 Yabari anuyayi bhi. Peeche se gaon waalo ki bheed aa rahi thi. Fromos aur Yabanov ki nighahen mili aur phir afra tafri k mahaul mey Fromos gayab ho gaya. Wahan 7 lashen thi jinme se 3 par Prentak aur 4 par Yabari santo k kapde the, unke chehre aur shareer chaku ya pathar se kuche gaye the. Nishkarsh nikala gaya ki Nastik Fromos ne Prentak aur Yabari k santo mey matbhed faila kar dono ko ladva diya aur jo bach nikle unhe khud maar diya jinme se ek katl Yabanov aur Swahil ne dekha bhi tha. Par Yabanov ko Fromos ki nazron ne kuch aur kaha tha, Yabanov k liye ye sachchai maanna mushkil tha, pavitr kitaab bhi gayab thi uski pratilipiyan abhi ban bhi nahi paayi thi. Yabanov ne sab gaon walo ko dilasa dete hue kaha ki kitaab surakshit hai aur kuch samay tak jungle k is shetra mey na aayen kyoki is tarah wo jagah-jagah ghoom rahe jasooso ya sainiko ki nazar mey aakar sandeh badha sakte hai.

Saavdhani k liye lasho ko bistarbandhon mey bandh kar naqabposho k hamle mey bache 12 mey se ab 4 log sudoor junglon mey chale gaye. Yabanov ki ichha thi ki bade santo ki lasho ki antim kriya sabhi reeti rivajo k saath ho isliye sabki ichchha k viruddh jaate hue unhone lasho ko dho kar chalte rehne ka nirnay liya. Yabari mey lasho ko dafnane ka sabse paavan samay poornima ki raat maana jata hai jisme Yabari pavitr kitaab k anusaar farishte chaand ki sheetal kirno k zariye apni lash ya sad rahe avshesho k aas-paas bhatak rahi aatmao ko lene aate hai. Poornima aane mey abhi poore 6 din the, ek gaon wala khabar laya ki sainiko k ek tukdi ne elaka chinhit kar liya hai aur wo jungle mey ghus chuke hai. Khatre se door hone k liye lasho ko dhote hue wo log lagataar bhagte rahe aur 4 dino baad unhone ek pahadi gufa ki sharan li.

Prentak dharm guru Swahil apne saathiyon k maare jaane se bahut dukhi the. Unhone apne mrit santo ki aakhri ichchha anusaar unke shav pehle hi Prentak anuyayiyon k liye pujniye nadi Ridyel mey baha diye the. Par ab bhi wo 4 log durgam sthitiyon mey Yabari santo k 6 shav dho rahe the jo ab sadne lage the aur unki badbu badh rahi thi. Is palayan mey gaon waalo se mili rasad peeche chhut gayi thi. Lagataar bhaagne se dimaag aur shareer kund pad rahe the.

Guru Swahil itni vedna, thakaan aur bhookh jhel nahi paaye wo behosh ho gaye. Jab wo hosh mey aaye to unhe Guru Yabanov ne nadi ka paani pilaya aur khaane ko pakaya hua maans diya. Swahil ko jaise khazana mil gaya ho dino ki bhookh mitane ko wo maans khane lage. Thoda kha lene k baad usne dekha ki Yabanov udaas baithe hai aur unke 2 anuyayi sankoch se unhe dekh rahe hai. 

Swahil sthiti bhaamp kar dheeme swar mey samjhate hue bole –
“Hum logo par bahut jeevan nirbhar hai, mai jaanta hun aap logo ka dharm maansahar ki ijazat nahi deta. Par wo to mera bhi nahi deta, abhi hum log mar gaye to ye baaten aage hazaro lakho logo tak kaun pahunchayega?”

Yabanov ka chehra aur swar sakht ho gaya, “Meri taraf mat dekho santo, mai zinda reh lunga. Kachcha maans mat khao. Prentak Guru Swahil ki tarah paka hua maans khana shuru karo. Khud ko zinda rakhna hai….”

Par dono anuyayi apna sar jhukaye bilakh bilakh kar rone lage.

Yabanov – “Lagta hai tum dono aese nahi maanoge, ye dekho Mai! Tumhara dharm guru ye maans kha raha hai. Ab khao….Santo…Yabari k naam par khao…shayad upar waale ki yahi marzi hai.”

2 din bhar pet khaane k baad Yabanov aage ki yojna par vichar karne lage santo k saath.
Swahil – “Laashen kahan hai? Kya aap logo ne lasho ki antim kriya kar di? Par poornima to aaj hai.”

Swahil ko jab sach pata chala to wo nishabd hokar zameen par baith gaye. Unki behoshi kuch ghante ki thi jis dauraan 3 lashen bhediyon ka jhund utha le gaya tha jinhe kamzor pad chuke Yabanov aur 2 sant rok nahi paaye. Kisi tarah aag jalakar jungli jaanvaro ko bhagaya. Yabanov ne aakhri bachi lash ka maans paka kar Swahil ko diya….taaki wo zinda reh saken, ye sab dekh kar apne bhagya ko kos rahe 2 anuyayiyon ka sankoch mitane k liye unhone khud bhi apne hi shishya-sant ka maans khaya.

Swahil ne Yamanov ko bataya ki Jungle ki pashchimi disha mey Illumnaat k Zehrab desh k paas 2 jungli kabile Prentak dharm ko maante hai wahin se surakshit reh kar kuch dino tak Illumnaat k viruddh apna abhiyaan chalaya jaa sakta hai. Yabanov ne lasho ko lekar bhaagne mey raaste bhar mehsoos kiya ki koi unhe dekh raha hai par ye aniyamit sone aur khaane k lakshan bhi ho sakte the isliye zyada dhyaan nahi diya. Phir se jaan jokhim mey daalte hue wo log durgam jungle, pahadon se guzarte hue jab kabile se sirf kuch ghanto ki doori par reh gaye tab un logo ne aaram karne k liye apna shivir dala par wahan bhi durbhagya ne dastak di aur dono Yabari santo ko saanp ne kaat liya aur unki maut ho gayi. Unke Muh se nikalte jhaag dekh kar Yabanov ka dhairya toot gaya aur  wo dahade maar kar krandan karne lage. Wo unhe asahay se dekh rahe Guru Swahil se lipat kar rone lage. Swahil ne unhe santvna di aur dono ne phir kabilo ki taraf ka safar shuru kiya. Aakhirkar dono un kabilon par pahunche.

Ummeed se ulat achanak Nastik Fromos ne ek baar phir hamla kiya, is baar Swahil ghayal hue aur is se pehle ki unpar Fromos dwara gambhir vaar hota Yabanov ne unki puar sun peechhe se Fromos ko zakhmi kar diya, jab tak kabile waale aate tab tak Fromos faraar ho chuka tha.

Usi din kabile mey bahut se sainik aaye aur unhone Yabanov ko giraftaar kar liya. Jabki hasta hua Swahil aur dono kabile ye tamasha dekh rahe the.

Swahil – “Illumnaat k mukhya salahkaar Vardah ka abhinandan swikar kijiye, Guru Yabanov….ha ha ha ha….”

Yabanov – “Itna bada chhal? Par kyu Swahil?”

Swahil (Vardah) – “Tujhe to hum kabhi bhi yun hi masal dete par teri shakti tera dharm hai, teri chhavi hai. Marna tujhe amar farishta bana deta. Ek Yabari hi dharm hai jispar humey paar pana tha baaki to yun hi kuchle jaate. Par Yabari k uday se kukurmutto ki tarah bagawat ki aandhi jagah-jagah failne lagi. Log humpar prashn karne lage….aur prashno k uttar dene mey mai bachpan se kachcha hun. Humey teri maut nahi, tere dharm ki maut chahiye taaki ye vidroh k badal eksaath chhant jaaye. Tere naam ka isteymaal kar bada prachar kar diya hai hum logo ne ki wo vaishya waali afwah sahi thi aur na tere paas Yabari ka pavitr kitaab hai. Ab teri saarvjanik maut k saath Jirawo aur Zehrabmay ho jayega.”

Yabanov – “Oh…Fromos…”

Swahil – “Haan, Nastik Fromos ne bada pareshaan kiya. Tere sant maar dene k baad unki lashen jagah- jagah se kuch di thi aur unhi k saath gaon k 3 logo ki lasho ko Prentak anuyayiyon yaani mere gupt-charo ki poshak pehna kar waise hi kuch diya gaya jagah jagah se. Par Fromos ko bhanak lagi aur usne mere 2 guptchar maar daale aur teesre ko hum dono k saamne ghayal kar diya, in teeno ko andhere ki aad mey maine hi chhupa diya. Kuch batane se pehle Fromos ko bhi bhaagna pada. Beech safar mey Fromos ek – do baar humare paas tak aaya par maine raste badal liye, aakhir mey jab kabile k paas usne hamla kiya to meri kismat achchhi rahi aur uski buri. Wo granth jungle ki mutbhed mey Fromos le uda…par kitab ka uske paas rehna ya jal jana ek hi baat hai…aakhir wo aastik jo thehra.”

Kuch dino baad us “Niyati Divas” par Zehrab ki rajdhani Jirawan mey lakho logo ki bheed lag gayi jo Illumnaat aur Vardha ki baaton par vishwaas nahi kar paa rahe the ki Yabanov ek dhongi, kroor-paapi Dharm guru tha jo aiyyash tha, jisne ek veshya k liye Yabari k pavitr granth ko bhi bech diya. Ye jaan kar kai chhoti-badi afwahon se pehle se hi sandeh mey doobe log Jirawo dharm apna lenge.

Illumnaat – “To kaise maare Yabanov ko? Koi tadapne waali dheemi maut theek rahegi taaki wo jan samooh k saamne dard se cheekhta rahe aur ye lage ki Yabari k bhagwan apne sabse bade anuyayi ko bhi nahi bacha paa rahe?”

Vardah – “Samrat! Aapko ek sujhav dena chahunga. Yabanov ko maanne waalo ki sankhya bahut hai, buddhe ne itne achchhe kaam kar rakhe hai jeevan bhar ki logo ko ab bhi shaq hai ki humne afwahen failayi hai, Yabanov ko zabardasti bandi banaya hai aur khud hi Yabari ka granth jala diya hai. Uske liye maine khaas saza sochi hai….Top se udana, shero ka bhojan banvana ya jala dena to aam saza ho gayi, maine kuch rajyo k adhyan mey dekha ki wahan fansi ki saza prachlit hai aur us se judi ek khaas baat bhi…..”

Us nishchit din Illumnaat k kile k upar Vardah aur Illumnaat maujood the. Bheed apne aadarsh Yabanov ko bandha dekh asmanjas mey thi. Tabhi bhompu pakde Vardah ne granhit swar mey bolna shuru kiya.

Vardah – “Ek taraf Yabari hai jo dushto ka dharm hai, paapiyon ka dharm hai. Wahan k dharm guru manav maans khaate hai, kaali sadhnayen karte hai, khooni hai, aiyyash hai…sirf ek vaishya k liye inhone peedhiyon se chala aa raha apna pavitr granth tak bali chadha diya. Ek taraf hai Illumnaat, Zehrab ka Jirawo jo pavitr hai, humey achchhai k marg par chalne ko prerit karta hai, doosro ki madad ko prerit karta hai, jiska Ishwar paapiyon ko dandit karta hai aur aaj ek aesa hi paapi unke darbaar mey dandit hone aaya hai. Ab ye aap par hai ki aap Yarabi jaise dushto k dharmo ko chunte hai ya paavan Jirawo ko….”

Apni taraf se soche gaye manghadant apradho aur sabooton, gawahon k bal par ye kehkar Yabanov ko fansi ki vedi tak laaya gaya ki aage ka saboot khud Jirawo k Ishwar denge.

Faansi hone par kuch der chhatpatane k baad Yabanov ka shareer shithil pad gaya aur unka guptang sakht ho kar khada ho gaya aur uske aas-paas kapdo mey thoda geelapan aa gaya.

*Death Erection/Angle Lust

A death erection is a post-mortem erection observed in the corpses of men who have been executed, particularly by hanging (90%).

Vardah ki to jaise mannat poori ho gayi.

“Dekha aap logo ne Jirawo ke Ishwar ne dikha diya ki wo Yabari jaise dooshit dharmo k ishwaro se behtar hai. Yabari k Dharm Guru ki jaan nikalne k baad bhi Vasna uske shareer mey basi reh gayi aur us paapi ka guptang khada ho gaya…ye humare Ishwar ki jeet ka sanket hai.”

Janta niruttar aur avak thi.

मिली बरसात ज़मी से तेरी महक लायी,
क़ुदरत भी सीख गयी इंसानों सी रुसवाई.
देखी हर रस्म सरे-आम पस्त होते हुए,
कितने ज़हरीले लफ्ज़ ज़ेहन मे पेवस्त होते हुए.

हुयी जो रौशनी कम तेरी यादों से नम आँखों मे,
उसको भी मौसम की धुंध मान लिया...
दरो-दिवार रंगी कालिख से शहर वालो ने,
उसी कालिख से शहर भर मे तेरा नाम लिखा....

दहशत के दौर में लगे बंदे ईमान ढकने ..
सराय में लगे ऊँचे अल्फाज़ बिकने।
इल्म था की जंग बराबरी की होगी ...
सामना हुआ तो हम मज़हबी निकले ...वो मतलबी निकले।

खुदा को अर्जी दूँगा की हर फकीर की मौत का दिन उस से भी बाँट ले ....
 
हमे जन्नत जल्दी जाने मे कोई हर्ज़ नहीं है ...
पर किसी फ़कीर के छोड़े अधूरे कामो का दुनिया मे कहीं मर्ज़ नहीं है।

मुद्दत से दौड़ा किये जिस जन्नत सी मंजिल की ओर
पहुँचने पर एहसास हुआ की सफ़र मे साथ लगी धुल ने उसको बेनूर किया.
और जाना की दस्तूरो ने हमेशा झूठ  कहा.....
रास्ता तो बिन बोले ही धूल बनकर साथ हो लिया....
ओर एक ये मंजिल है जो पास आने पर बहाने बनाती है!

मुद्दत से हमने ख्वाबो  को देखना छोड़ दिया,
कटीली राहों पर हर कदम ने रंगीन निशान छोड़ दिया.
मंजिलो के सामने मुकद्दर मुकर गया,
ज़माने को साथ लेने के इंतज़ार मे ज़माना ही गुज़र गया!

जशन की आड़ मे रुखसत हुआ...साजिश थी मेरी,
बिना रुलाये तुझसे हाथ जो छुड़ाना था!
मुड़ा जो तुझसे तो खुदगर्ज़ क्यों मान लिया?
ये भी एक जरिया है गम को छुपाने का!

Kile k kone se ek aur aawaz goonji.

“Haan! Yabanov dhongi tha isliye jab usne sapne mey apna antim samay dekh liya to  pashchyatap mey usne mujhe Dharm Guru banaya tha. Iska saboot hai ye Yabari ka pavitr granth jo mere paas hai. Mai hun Yabari ka dharm guru….aur mera ishwar dusht nahi hai. Dusht Illumnaat aur uske anuyayi hai. Iska saboot mey khud fansi par latak kar dunga…”

Yeh Fromos tha jo poori taiyaari k saath aaya tha. Is se pehle ki kile k sainik us hisse tak aate, Fromos rassi k sahare teele par banaye ek manch par pahuncha jahan usne pehle hi fansi kaintezaam kar rakha tha.

Wo ab bhi nastik tha par apne aadarsh Guru Yabanov k saath hui nainsafi se usme pratishodh ki bhavna thi aur bewakoof-andhi janta ko Vardah, Illumnaat aur Jirawo ki jagah Yabari jaise dharm ka anuyayi banta dekhna zyada behtar tha. Kabile k paas Vardah par kiye hamle mey nakaam hone k baad wo chhup gaya aur kuch dino baad avsad mitane vaishyalay chala gaya, jahan use pata chala ki “Swahil” (Vardah) ki raksha karne waale Yabanov ki talwar se lagi chot se aesa asar hua ki ab uska guptang kabhi khada nahi ho sakta.

Logo ne us manch ko gher liya aur koi kuch samajh paata is se pehle hi Fromos ne khud ko fansio laga li…par is baar uska guptang khada nahi hua.

Fromos k aakhri shabd the – “Erectile Dysfunction Bitches!”

Janta wo pavitr granth dekh aur Fromos ki sthiti dekh dange par utar aayi aur thode sangharsh k baad Yabari samarthako dwara Illuminaat ka takhta palat kiya gaya.

*Erectile dysfunction is sexual dysfunction characterized by the inability to develop or maintain an erection of the penis.

The End!


 Rating - 48/100

This Entry is Eligible for Multiple Genre Bonus (From the Given Themes of Quarter Finals) - Plus 5

Final Rating - 53/100

Judge's Comment

 It’s a simple plot -telling narrative! Nothing explored, most of the poss
ible points of interest were left, in middle and sometime untold! Overall unrealized story , the plot 'erectile dysfunction' was told but not exploited in detail against the backdrop of religious competition and their possible fictional ideologies and environment setup! The biggest weakness was character formation and failure to narrate and visualize their characteristics in the context of materialism and religious notions (fictional, or semi -fictional) regarding sexuality and their moral and political bearings in societies. and 18+ don't means only plotting sentence 'erectile dysfunction'  , better explore the 18+ area of sexual and religious studies instead giving simple bulletin news to your readers, save it for editors who don't have time to listen detail story and often guess the bearings of story through plots/idea! Most of the 48 marks here include the original plot which you bring !

Result - Mr. Mohit Sharma wins the match and qualifies for Semi-Finals. Mr. Deven Pandey is eliminated from Freelance Talents Championship, he will feature in combined play-off to decide 5-8 Ranks.  

Judge - Mr. Shambhu Nath Mahto (Artist-Colorist, Author and Research Scholar : History)

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