*) - कुवल्यपीड - गोविन्द
काल : 3096 ई.पू.
स्थान : मथुरा ,भारत
चियायांss ! मेघ समान गरजती उस चिंघाड़ ने मानो पूरे नगर के लोगो का लहु सर्द कर दिया ।
अपनी सूंड से तूफ़ान फुंफकारते उस मदमस्त जलजले को देख कई तो भय से जड़वत हो गए थे और कईयों की तो मानो हृदय गति ही रुक गई थी ।
अंकुशहीन , उस गरजते बवण्डर के पथ में एक रोती हुई दो वर्षीय बालिका नज़र तो सबको आ रही थी किन्तु उसे कुचले जाते हुए देखने के अलावा कोई कर भी क्या सकता था ।
तभी , सरसराती हवा को चीरता हुआ , चुस्त बाघ मानिंद , एक मेघवर्णी जिस्म , कुवल्यपीड की दिशा में बढ़ा ।
मेघनाद करते कुवल्यपीड ने जब दोनों टाँगे ज़मीन पर वापस रखी, तो उसे उस बच्ची की कुचली लाश देखने की उम्मीद थी , परंतु वहाँ कुछ न था ।
उसने देखा कि बच्ची तो उस मेघवर्ण वाले , छरहरे बदन के ,लगभग 16 वर्षीय युवा के हाँथो में थी ।
उसने बच्ची को एक बलिष्ठ युवा के हाँथो में देकर कहा -" दाऊ भईया ,कदाचित गजराज की बुद्धि यथोचित स्थान पर नहीँ है , मैं जरा इनकी अक्ल वापस ठिकाने लगाकर आता हूं ।"
दाऊ बोले- "ध्यान से गोविन्द ! यह कुछ ज्यादा ही उन्मत मालूम पड़ता है ।"
अब कुवल्यपीड और गोविन्द ने एक दूसरे की आँखों में आँखे डाली , मानो दोनों अपने प्रतिद्वंदी को तौल रहे हों।
कुवल्यपीड भागता हुआ जब एकदम निकट आ गया तो गोविन्द ने विद्युत गति से अपना स्थान छोड़ दिया ।
भड़ाकss! मदमस्त हाथी का सिर दीवार से जा भिड़ा और उसके सिर में पीड़ा की लहर दौड़ गई ।
"वहाँ कहाँ मुझे तरबूज़ों के मध्य खोज रहे हो गजराज, मैं यहाँ हूँ ।" - गोविन्द का यह ताना सुनकर क्रोधित हाथी फिर उस पर लपका ।
पास पड़ा एक डंडा उठा के गोविन्द ने हाथी की बाँई तरफ उछाला , जिस से हाथी एक क्षण को दिगभ्रमित हुआ, उसी एक क्षण में चुस्ती से उसकी सूंड पर हाथ टिका , गोविन्द उसके मस्तक पर जा बैठा ।
गोविन्द ने तेज़ी से वह धागे तोड़े , जिनसे दो छोटी छोटी घण्टियाँ हाथी के कानों में लटकी थीं ; जितना तेज़ वो दौड़ता , घण्टियाँ उसके कानों में बजती और शोर से तनावग्रस्त हो वह विनाश का दूत बन जाता।
फिर गोविन्द ने उसके कानों के पीछे ,नीचे की तरफ "विधुर" मर्म पर विशिष्ट दबाव डाला । (विधुर मर्म श्रोत्रेन्द्रिय संचालक है )
कुवल्यपीड को एकदम सारा संसार शोरविहीन लगा ; एक अभूतपूर्व शान्ति का एहसास हुआ , जैसे परमेश्वर स्वयं उसका मस्तक सहला रहे हों ।
गोविन्द ने इशारा करके उसे बैठाया ; एक तरबूज़ के दो फाड़ किये और फिर उसके साथ मजे से खाने लगा मानों दोनों बचपन के मित्र हों ।
बाद में सैनिक कुवल्यपीड को ले गए ; जाते जाते वह पलटा और सूंड उठाकर उस मधुर मन मोहक मुस्कान वाले गोविन्द को अभिवादन किया ।
मथुरा नगर में लोगों की चहलकदमी धीरे धीरे फिर बढ़ी जो इस बात का घोतक थी कि फिलहाल वहाँ शान्ति बहाल है ।
बुद्धि और धैर्य मनुष्य के वो साथी हैं, जिसके बल पर वह विकट से विकट परिस्थिति को भी अपने अनुकूल बना सकता है ।
===============
Rating - 113/200
Mujhe lagta hai ki vishay mey jitni sambhavna thi utna pahunch nahi paaye lekhak. Bhasha shaili sundar hai. Saath mey kalakriti sundar hai par shayad ye kalakaar ka usual style nahi hai to prakritik nahi lagi.
Total Points after 2 Rounds - 221/400
Judge - Mohit Trendster
#ftc1516 #freelance_talents #freelancetalents #mohitness
No comments:
Post a Comment