Friday, June 28, 2013

Round 2 (Match # 6) - Youdhveer Singh vs. Ravi Yadav



*) - प्रेम : असीमित भावो की सीमित अभिव्यक्ति
(शैली- छदम व्यंग)

(Youdhveer Singh) 



भगवान् ने इस सृष्टि को सबकुछ दिया है..उसी में प्रेम भी आता है..भगवान् ने जब इंसान.जानवर..पेड़ पक्षी आदि बनाए तो उसके दिमाग में यह बात आई कि यह सब कैसे एक दूसरे से जुड़ेंगे..और ऐसे जुड़ेंगे जिसको फेविकोल का जोड़ कहा जाए..तब उसने प्रेम की भावना सभी के अन्दर डालकर काम खत्म कर लिया!

प्राचीन काल से ही खासकर भारत में प्यार को काफी महत्ता दी जाती थी...वसुदेव कुटुम्बकम कि परमपरा पर चल रहा देश प्रेम की सोच पर भी आधारित है..इसके उलट पश्चिम में एक सत्ता की परिकल्पना को खून से सींचा जाता है...प्यार के विषय को गहराई से जानने के लिए हमारे ऋषि मुनियों की विशेष इच्छा रही थी...इसके उपरान्त ही कामसूत्र जैसे महा ग्रंथो की रचनाएँ भी हुयी...जिसका महत्वपूर्ण प्रभाव समाज पर पड़ा! प्राचीन अभिलेखों से लेकर अजंता एलोरा और मध्य प्रदेश में मिलने वाले मंदिरों पर उकेरी हुयी..काम कला के खुले प्रदर्शन वाली आकृतियाँ स्पष्ट बताती हैं कि "प्रेम" और "काम" के बीच सहभागिता है.
सवाल यह भी है कि क्या प्रेम की सीमा सिर्फ प्रेमियों के मध्य ही होती है? इसका सीधा सा जवाब मिलता है कि प्रेम की कोई सीमा निर्धारित नहीं है..यह अनंत है..सीमा मुक्त है...क्या चाँद के साथ उसकी चांदनी की कोई सीमा है? या हवा बादल को अपने प्रेम का प्रमाण देती है? बिलकुल नहीं!  वो प्रेम ही था..जिसने राम के हाथो पूरी राक्षस सेना का विनाश करवा दिया और अपने माता पिता के विछोह में डूबे कृष्ण के हाथो अपने मामा कंस का! शिशु पैदा होने से पहले ही गर्भ में अपनी माँ के साथ जो सम्बन्ध जोड़ता है वह प्रेम का बंधन ही है! जैसे-जैसे वो बड़ा होने लगता है और प्रेम पूर्ण स्पर्श पहचानने लगता है तभी उसका सम्बन्ध प्रकृति और जीवो से जुड़ता है! यानी स्पर्श और प्रेम एक दूसरे से जुडी बातें हैं...काम कला के प्रदर्शन में भी स्पर्श का महत्व सबसे ऊपर है

प्रेम के अनगिनत रूप है...सच्चा प्रेम अर्थी पर लेटे व्यक्ति को भी वापस जिंदा करने की शक्ति रखता है..देवी सावित्री ने यमराज को जीतकर इस बात को सिद्ध किया भी है..प्रेम व्यक्ति अपनी जन्मभूमि से भी बहुत करता है..मिटटी उसको एक काबिलियत देती है जिसका क़र्ज़ होता है..जिसको चुकाने के लिए जीवन का बलिदान देने में भी पीछे नहीं हटा जाता! कुछ गद्दार भी होते हैं..मगर अपवाद स्वरूप क्यूंकि कुछ लोगों में भगवान प्रेम के हार्मोन्स डालना भूल जाता है!अगर देश के सीमा पर लड़ता जवान अपने देश से प्यार के खातिर मरने को तैयार होता है...तो अपने परिवार..बीवी..बच्चो के प्यार में वापस आने के लिए अपना ख्याल भी रखता है..और कोई बेवकूफी वाली हरकत नहीं करता..जिससे गैरवाजिब नुकसान हो. प्रेम अपने भगवान् से भी होता है..जिसने सबको बनाया..उसकी भक्ति में रंगे भक्तो की टोलियों को हम अमरनाथ या हज जैसी पवित्र धार्मिक यात्राओं  में देखते हैं...मीरा का अपने ठाकुर जी के लिए अनन्य प्रेम जगत प्रसिद्ध है...जिसने अपना  सर्वस्व जीवन ही अर्पण कर दिया! श्रवण कुमार को एक पल नहीं लगा यह निश्चय करने के लिए प्रतिज्ञा करने में..कि वह अपने अंधे और अशक्त माता-पिता को कंधे पर उठाकर चार धाम यात्रा पर निकलेगा! अपने पुत्र की ऐसी प्रेम-भक्ति किस माता पिता की अंधी आँखों को रोशनी से जगमगा ना देगी!

प्रेम शान्ति का प्रतीक भी माना जाता है..इसमें डूबा व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना सीख जाता है..अब यहाँ जरूरी नहीं है की प्रेम सिर्फ कन्या से हो..प्रेम तो माता पिता..अपने काम अपने देश ..समाज ..खुद से भी हो जाता है! जहाँ प्रेम है वहां ईश्वर और सात्विकता दोनों आ जाती हैं..मगर क्या प्रेम की अधिकता का ही कोई प्रभाव है? जी हाँ बिलकुल है!

प्राचीन समय में गोस्वामी तुलसीदास जी की जब नयी नयी शादी हुयी थी..तो अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम के कारण वे धार्मिक मार्ग और अपने कर्तव्यो से विमुख हो गए थे..यानी मोहब्बत अगर किसी को निकम्मा बना दे तो वो प्रेम नहीं रह जाता! माता जीजाबाई को भी शिवाजी से बचपन में बहुत प्रेम था..यही हाल पृथ्वीराज चौहान की माँ का था...मगर ममता का व्यक्ति के कर्तव्य के आड़े आना सही नहीं है..हास्य व्यंगो में कई बार कोलंबस का जिक्र छिड़ता है की अगर उसकी बीवी होती जिसको वो बताकर घर से निकलता ..तो कभी अमेरिका ना खोज पाता...प्रेम वहीँ तक ठीक है जहाँ वो बेड़ियाँ ना बने.!

युवा वर्ग के अन्दर प्रेम का अंकुर जबरदस्ती डालने का पूरा ठीकरा बॉलिवुड के ऊपर ही फोड़ा जाना चाहिए है...वैसे मोहब्बत तो हमेशा से होती रही हैं..मगर फिल्मो के आने के बाद प्रेम ने तरक्की की सभी सीमाएं तोड़ डाली और नए कीर्तिमान बना दिए! आपको किस उम्र में..कितनी बार.. किससे और कब प्रेम हो जाना चाहिए..यह फिल्में ही युवक-युवतियों को बताती हैं ! लव सेक्स और धोखा वाली नयी जनरेशन में कुछ भी आत्मा की आवाज़ पर नहीं होता...Everything is planned! फ़िल्मी प्यार से निकली तरक्की देखनी हो तो भोजपुरी देखने वाले यूपी बिहार अंचल के गाँव की नौटंकी प्रेम बाजी देखनी चाहिए...वैसे गाँव की बात छिड़ी है तो एक रोचक चीज़ है..जहाँ 24 घंटे घूँघट में ढकी मेहरारू से मियां एक चुम्बन मांगने से भी पहले सोचते जरूर हैं..मगर इसके उलट शहरों में जगह-जगह पर खुले सार्वजनिक पार्क चुम्बन के आदान-प्रदान के खास स्पॉट चिन्हित हैं..जहाँ आप वैलेंटाइन्स डे के दिन को छोड़कर साल भर प्रेम के झूले पर झूल सकते हैं...364 दिन के खुलेआम प्यार के एवज में 1 दिन की पार्क में मिलने वाली पुलिस और संस्कृति प्रेमियों  द्वारा हुई पिटाई भी युवक युवतियों का जीवन धन्य कर देती है! अपना देश incredible ऐसे ही नहीं कहा जाता!

आधुनिक काल में प्रेम की परिभाषा और उसके स्वरुप में भारी अंतर आये हैं..प्रेमियों के मध्य जहाँ आत्मिक प्रेम से अधिक शारीरिक प्रेम और सुख प्राप्त करने की भावना प्रबल हुई है...वहीँ एक दूसरे के लिए सम्मान भी घटा है! माता-पिता के लिए प्रेम का ढिंढोरा भी अब Mother 's Day और Father 's Day जैसे दिनों को मनाकर पीटा जाता है..जो पश्चिम की देन  है..जहाँ हर चीज़ के लिए एक दिन निश्चित कर दिया है..क्या हम इसी के पीछे भागेंगे..शर्म का विषय है..जहाँ हर दिन प्रेम और विश्वास का होता था..वो युवा के लिए त्यौहार की तरह बना दिया गया है..जिसको मानकर भूल जाओ..और अगले साल फिर से मना लो! रोकथाम ना करी गयी तो भारतीय परम्परा पर कुठाराघात करती यह चीज़ एक दिन हमारे आपसी प्रेम और श्रद्धा का श्राद्ध करवा देंगी !

प्रेमियों के बीच मोहब्बत भी बड़ी रोचक होती है.इसमें जुबान से ज्यादा आँखों के इशारे से बातें होती थी..मगर आज कल यह नहीं मिलता..अब प्रेमी के लिए प्रेमिका की तारीफ सिर्फ मोबाइल में मैसेज टाइप में ही निकलती है..या चुराए हुए ग़ालिब के शेरो द्वारा! दिल के जज्बात खुद नहीं बनते!

प्रेमी लगे होते हैं..प्रेमिका के जिस्म के हर हिस्से पर द्विअर्थी शेरों की बौछार करने में मशगूल और प्रेमिका के पास भी समय नहीं होता अपने प्रेमी कि नियत पर खुश या गुस्सा करने में! उसके पास भी कई जगह के अपॉइंटमेंट पहले से होते हैं.! दोनों की तन्द्रा तब टूटती है..जब किसी एक का बाप आकर प्रेमी को लात मारकर सपनो की दुनिया से बाहर लाता है...यहाँ भी अगर प्रेम सच्चा होता है.तभी आगे कुछ शादी तक बात पहुंचती है..वरना अकल्मन्द प्रेमी नयी चिड़िया को दाना डालने चले जाने में ही भलाई समझते हैं..मगर यदि  प्यार सच्चा है..तो बाज़ीगर प्रेमी.... दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे देखकर लड़की को भगा ले जाते हैं...हाँ हमें मालूम है..कि फिल्म में हीरो भागकर नहीं शादी करता..मगर हमें यह भी मालूम है..कि आजकल का कोई मजनू लड़की के बाप के हाथो 10 चांटे खाने का दम भी नहीं रखता...मगर कहेगा खुद को शाहरुख़ की औलाद ही! तो अगर बाद में घरवाले माने तो प्रेम समुन्दर में डूबे ऐसे प्रेमी युगल अपने घर वालो की इज्ज़त का पूरा जनाज़ा निकालकर वापस आ भी जाते हैं!
शादी के बाद मियां बीवी के प्यार पर भी नज़र डाली जाए..तो शुरू के 2-4 साल तक नयी बीवी होने की ख़ुशी में मियां चहके हुए नज़र आते हैं..मगर धीरे धीरे उनका जोश भी ठंडा पड़ता जाता है...महिलाओं के अन्दर खुद से प्यार करने वाली चीज़ पुरुषो से ज्यादा प्रबल होती है..पति का प्यार पत्नी की झूठी तारीफ में झलकता है.वहीँ पत्नी की कोशिश भी रोज पति के झूठ का घड़ा अपने ऊपर भरवाने की होती हैं.! दांत पीसते पति के पास इसके अलावा दूसरा रास्ता बचता भी नहीं..वरना उसकी जिंदगी का जेहन्नुम होने में 1 पल ना लगे!
वैसे प्रेम तो लोगों को शादी के बाद भी हो जाता है..पहले जहाँ ऐसे प्रेम को उतनी अच्छी तरह से नहीं देखा जाता था..मगर अब सोच में परिवर्तन आने लगा है..और यहाँ सिर्फ मर्द ही नहीं बल्कि औरतें भी इसको स्वीकार करने लगी हैं! हमारा इस मामले में यही मानना है कि प्रेम जब तक 2 दिलों के आपस में तार जुड़े रखे तब तक रिश्ता बनाये रखना चाहिए...जहाँ प्रेम नहीं होगा..वहां रिश्ता एक बोझ ही साबित होता है!
शादी का बंधन प्रेम से बंधा होता है...और अगर कभी इस बंधन में प्रेम की कमी हो जाती है..तो कोशिश यही करनी चाहिए कि वो कमी दूर करी जाए..लेकिन अगर हर कोशिश विफल साबित हो..तो नए रास्ते खोजने में ही अकलमंदी है..यह जीवन भगवान् का दिया हुआ है...इसको ख़ुशी से जीना चाहिए...अपने अलावा दूसरो के लिए भी सोचकर..उनसे प्यार करके!
कई बार शादीशुदा जोड़ों में किसी एक के स्वर्गवास के बाद दुसरे साथी के जीवन में प्रेम और खुशियाँ समाप्त मान ली जाती हैं...समाज उसको अकेला रहने पर विवश करना चाहता है..ख़ासकर महिलाओ को...कि उनके जीवन में नया प्यार का अंकुर नहीं फूट सकता..और अगर ऐसा हो तो वो पाप है!..ऐसी दिवालिया सोच जो अकेलेपन को प्रेम से ज्यादा श्रेष्ठ मानती है..उसका पुरजोर विरोध होना चाहिए...सरकार का नारा है कि पढने की कोई उम्र नहीं होती...तो फिर प्यार में यह नया नारा क्यूँ ना बने..कि "प्यार और विवाह की भी कोई उम्र नहीं होती"...अगर आपको कोई पसंद है तो आपकी ख़ुशी में खलल डालने की इजाजत किसी को नहीं है! इसके लिए युवाओं को ही आगे आना होगा और सच्चे प्रेम को मंजिल देनी होगी!
इतने सारे प्रेम से जुड़े रिश्तो पर सीमित बातें कहने के बाद एक और प्रेम से भरा रिश्ता है जिसमे प्यार है तो लड़ाई भी..दुसरे के लिए फ़िक्र है तो वात्सल्य भी! वो रिश्ता है भाई और बहन का! भाई का अपनी बहन का लिए प्यार बहुत आत्मिक और सुरक्षापूर्ण होता है..उसमे गुस्सा अगर होता है तो बहन की भलाई के लिए! वो उसके लिए अपनी खुशियों का त्याग भी कर सकता है !वहीँ बहन भी अपने भाई में पिता सामान छाया देखती हैं. और भैया से यह आशा रखती हैं की वो अपने हर अच्छे बुरे समय में बहन को शामिल करना नहीं भूलेगा..इतना प्रेम पूर्ण रिश्ता बहुत नसीब वालो को मिलता है!
इस संसार में हर तरह के लोग हैं..ऐसे ही कुछ लोगों में एकाकी रहने वाले भी होते हैं...यानी ना कोई प्यार..ना रिश्ता..ना ख़ुशी ना गम ...अब सवाल उठता है कि ऐसे लोगों की सोच सही है या नहीं..क्यूंकि मुख्यतः ऐसे लोगों की अपनी एक अलग दुनिया है..जहाँ उनका प्यार भी कुछ अलग तरह का होता है..मसलन कोई वैज्ञानिक सालों तक अपने किसी काम में डूबा मिलता है!जब तक उसे सफलता ना मिल जाए..यानी यह काम ही उसका असली प्यार है! तो हमको अपना उत्तर मिल जाता है कि प्रेम करने के लिए कोई जीती जागती चीज़ का होना जरूरी नहीं है...एक मूर्तिकार अपनी बनाई हुई मूर्त से भी प्यार कर  सकता है और वो प्यार किसी इंसानी जज्बात से किसी भी तरह से कम नहीं आँका जा सकता!

प्रेम की जरूरत हर व्यक्ति को होती है..जो लोग भगवान् द्वारा इस संसार में हर ख़ुशी से नवाजे गए हैं..उन्हें भी और जिनका जीवन सामान्य नहीं है..उनमे कोई कमी है उन्हें तो और भी ज्यादा जरूरत है प्रेमपूर्ण स्पर्श पाने की..क्यूंकि भावनाओं पर उनका भी अधिकार है! हमारा इशारा अनाथ एवं स्पेशल चिल्ड्रेन्स की तरफ है..जिन्हें छोटी से उम्र में ही बहुत सीख यह दुनिया दे चुकी होती है! समाज का दायित्व बनता है कि इन बच्चो की तरफ भी वो अपना प्रेम लुटाये..समय समय पर इनके बीच वक़्त बिताकर इनसे घुल मिलकर इन्हें समाज की मुख्यधारा में होने का एहसास कराया जाना बहुत जरूरी है...आपके प्रेम से भरे दो बोल उनके लिए बहुत बड़ी नेमत होते हैं...कभी कोशिश करके देखिएगा...आप एक आत्मसंतुष्टि अनुभव करेंगे!

Rating - 50/100

Judge's Comment - A good and thoughtful article. I like your "vyangya" style. The satire you have used throughout the article, felt pinching and nice at the same time. You have got a good sense of observation. Keep it up.

 *) - प्यार
(Ravi Yadav)

जब कॉलेज में था तो एक कविता सग्रह लिखा था जो आज भी दिल के बहुत करीब है उसकी कुछ पक्तिया पोस्ट कर रहा हूँ इस आशा के साथ की आप मैं से जो भी प्यार करते हैं वो इसे लाइक करेंगे

जिन्दगी मे कांटे ही सही मेरे लिए,
पर तेरा फूल बनके महकना,
मुझे याद रहेगा
कभी भी मत सोचना मै भुला दूंगा तुमको
तुम ही नहीं
प्यारा चेहरा तुम्हारा
मुझे याद रहेगा
प्यार तो कभी नहीं देखा मैंने अपने लिए
तुम्हारी आँखों में
पर प्यार से तुम्हारा वो नज़र झुकाना
मुझे याद रहेगा
बिकते हैं बाज़ार में गिर्टिंग कार्ड और गिफ्ट बहुत
पर अपनी हर ख़ुशी
तुम्हे उपहार में देना
मुझे याद रहेगा
माना बहुत से सुन्दर चेहरे हैं
इस दुनिया में
पर तुम्हे अपना पहला और आखिरी प्यार मानना
मुझे याद रहेगा
तुम सदा खुश और मुस्कुराती रहो
यह कहकर
तुमसे बिछड़ना
मुझे याद रहेगा

 Rating - 41/100

Judge's Comment - Good rhyming. I was able to see the feelings behind the words. Although you could have selected much better, classical words to suit the genre. Especially, injecting a few English words felt a little awkward towards the end. Rest, the feel was nice.

Result - Mr. Youdhveer Singh wins the match and enters Round 3. Mr. Ravi Yadav is eliminated from Freelance Talents Tournament.

Judge - Mr. Pankaj Vijayvargiya (Author, Musician & Entrepreneur)

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