ये कहानी है प्रिया और अमित की,जिन्होने अपने प्यार को पाने के लिए सब कुछ छोड़ दिया। पर आखिर मे क्या अंजाम हुआ उनके इस प्यार का?
*) - क्या यही प्यार है
पर जब कोर्ट मे जज के सामने प्रिया के बयान देने की बारी आई तो वो उसने कहा कि वह और अमित एक दूसरे से प्यार करते है और शादी भी कर चुके है। अब वह अमित के साथ ही रहना चाहती है।
प्रिया के बयान को सुनकर जज ने अमित को बरी कर दिया और प्रिया को अमित के साथ जाने की इजाजत दे दी। प्रिया के पापा ये सब सुनते ही गुस्से से कोर्ट रुम से बाहर चले गए. अब जब सब कुछ ठीक हो गया था तभी कुछ ऐसा होने लगता है जिसका अमित को पहले से शक था।
आजाद ख्यालोँ वाली प्रिया को अमित के मम्मी पापा के साथ एडजस्ट करने मे प्राब्लम हो रही थी। अपने सारे काम नौकरोँ से करवाने की आदि प्रिया घर के काम करना वो वैसे ही नही जानती थी। इसलिए आखिरकार उसने फैसला किया कि वो और अमित अलग घर मे रहेगे,जहाँ वो बिल्कुल स्वतन्त्रा से रह सकेगी। अमित को प्रिया का ये फैसला पसन्द तो नही आया पर प्रिया की खुशी के लिए ना चाहते हुए भी अमित ने एक छोटा सा घर किराये पर ले लिया। अब अमित और प्रिया अलग रहने लगे।
पर जल्द ही प्रिया को एहसास हो गया कि उसने अलग रहने का फैसला करके गलती कर दी। पहले घर के काम करने मेँ अमित की माँ भी मदद कर देती थीं,वही अब वो सारे काम प्रिया को अब खुद करने पड़ते थे।
नाजोँ मेँ पली प्रिया धीरे-2 इस तरह की जिन्दगी से ऊब गई। जिन्दगी की कड़वी असलियत को जानकर जल्द ही उसके सिर से प्यार का भूत उतरने लगा। उसे अब एहसास होने लगा कि अमित के साथ वो वैसी लाईफ स्टाईल नही पा सकती,जैसी उसे चाहिए थी। इसी कारण वो अन्दर ही अन्दर घुटने लगी,जिससे वो अक्सर बीमार रहने लगी।
इधर अमित को एक छोटी मोटी जॉब मिल गई थी,जिससे बामुश्किल घर खर्च ही चल पाता था। इससे प्रिया की महँगी जरुरते पूरी नहीँ हो पाती थी। अब प्रिया छोटी-2 बातोँ पर अमित से झगड़ने लगती। उनके बीच अब वो पहले जैसा प्यार नही रह गया था।
आखिरकार इस तरह की जिन्दगी से परेशान हो चुकी प्रिया को अपने घर की याद आई,जहाँ उसको फूलोँ की सेज पर रखा जाता था। उसके कहने भर की देर होती थी की उसे जो चाहिए होता था हाजिर हो जाता था।
आखिरकार प्रिया ने अपने पापा से बात करके माफी माँगने की सोची। ये सोचते हुए कि अपनी एकलौती बेटी की अब तक उन्होने माफ कर दिया होगा, जब प्रिया ने अपने घर फोन किया तो फोन को उसके पापा ने रिसीव किया। पर जैसे ही उन्होने प्रिया की आवाज सुनी उन्होने तुरन्त फोन काट दिया। प्रिया ने दोबारा मोबाईल मे कॉल कि और कॉल रिसीव होते ही रोने लगी। प्रिया को रोते हुए देखकर उसके पापा का दिल पिघल गया।
प्रिया ने चाहे जो भी किया था पर अपनी एकलौती बेटी को रोते देखकर वो बेचैन हो उठे। उन्होने प्रिया को चुप कराते हुए उससे रोने की वजह पूछी। प्रिया ने अपनी गलती की माफी माँगते हुए अपने हालात के बारे मे सब कुछ बता दिया। प्रिया ने पापा ने उसे अमित को तलाक देने को कहा। प्रिया पहले तो सोच मे पड़ गई पर जब उसने अपनी नर्क जैसी जिन्दगी के बारे मे सोचा तो उसने अमित को तलाक देने का फैसला कर लिया।
पर अब प्रिया माँ बनने वाली थी,जिसके कारण वो तलाक के फैसले को लेकर थोड़ा परेशान थी।
कुछ सोचकर प्रिया के पापा ने प्रिया को घर आने को कहा।
प्रिया ने अमित से कुछ दिन अपने घर जाने के बारे मे बात की। अमित खुश हो गया कि प्रिया कुछ दिन अपने घर पर रहेगी तो उसका मन बहल जाएगा। यह सोचकर अमित ने प्रिया को घर जाने की इजाजत दे दी।
कुछ दिनोँ बाद जब प्रिया लौटकर आई तो अमित को यह देखकर हैरत हुई कि प्रिया अब पहले से काफी कमजोर लग रही थी। जब अमित ने इसका कारण पूछा तो प्रिया ने जवाब दिया कि उसने अर्बाशन करवा लिया है। यह सुनते ही अमित को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कानोँ मे पिघला शीशा डाल दिया हो।
तुमने ऐसा क्योँ क्या। अमित ने गुस्से से प्रिया से पूछा।
तो मैँ और क्या करती। मैँ अपने होने वाली बच्चे को भी अपनी तरह इस नर्क जैसी जिन्दगी को जीते
हुए मैँ नही देख सकती। इस जिन्दगी को जीने से बेहतर है कि वो इस दुनिया मे आये ही नही।
इतना सुनते ही अमित ने प्रिया के गाल मे जोरदार चाँटा जड़ दिया। मत भूलो कि मेरे साथ जिन्दगी बिताने का फैसला तुम्हारा था,मेरा नहीँ। मैने पहले ही तुमसे कहा था कि मै तुम्हे वो सुख सुविधा नही दे पाऊगा, जिसमे तुम पली बढ़ी हो। अमित ने गुस्से से कहा।
हाँ वो मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल भी,जो मैँने नादानी और नासमझी मे की थी। पर अभी भी देर नही हुई है। मै अब अपनी उस गलती को सुधारना चाहती हूँ। मुझे तुमसे तलाक चाहिए। अब मैँ तुम्हारे साथ और नही रह सकती।
प्रिया ने भी गुस्से से भरकर अमित को दो टूक जवाब दिया।
अमित को आज एहसास हुआ कि प्यार नाम की कोई चीज नही होती। प्यार व्यार सब झूठ और फरेब है।
तुम्हारे लिए मैने क्या नही किया। जमाने भर की दुश्मनी मोल ली यहाँ तक अपने मम्मी पापा को भी तुम्हारी खुशी के लिए छोड़ दिया। क्या यही सब सुनने के लिए मैँने ये सब किया था। मै तुम्हे हरर्गिज तलाक नहीँ दूँगा। तुम्हे मेरी जिन्दगी को इस तरह बर्बाद करने का कोई हक नहीँ है। अमित ने भी प्रिया को तुरन्त जवाब दिया।
यह सुनते ही प्रिया गुस्से से पैर पटकते हुए अपने कमरे मे चली गई।
उस दिन के बाद अमित और प्रिया मे बातचीत बन्द हो गई।
अब दोँनो एक छत के नीचे रहते हुए भी अजनबियोँ की तरह रहते।
अमित यह सोचकर कि प्रिया को एक दिन उसके प्यार का एहसास जरुर होगा।
उसे मनाने की कोशिश करता रहा पर प्रिया ने तो बस तलाक की ही रट लगा ली थी।
जब अमित प्रिया की लाख कोशिशोँ के बाद भी तलाक के लिए तैय्यार नहीँ हुआ
तो प्रिया ने थक हार कर घर छोड़ कर अपने पापा के यहाँ रहने का फैसला करते
हुए घर छोड़ कर चली गई।
अमित इन सब चक्करोँ मे इतना डिस्टर्ब हो गया कि उसकी जॉब भी छूट गई।
ऊपर से प्रिया के जाने के बाद वो अन्दर से टूट गया।
अमित ने प्रिया से मिलने की बहुत कोशिश की पर प्रिया के पापा ने उसे
सरेआम बेइज्जत करके गेट से धक्के मारकर बाहर करवा दिया।
अमित अब पूरी तरह से टूट चुका था।
अब ना उसके पास नौकरी थी और ना ही उसका प्यार प्रिया।
अमित वैसे तो अपने मम्मी पापा से अलग रहता था पर 1-2 दिन मेँ उनसे मिलने
जरुर जाता था।
पर जब अमित अचानक कुछ दिनोँ से उनसे मिलने आना बन्द कर दिया तो उसके पापा
ने खुद अमित से मिलने उसके घर जाने का फैसला किया।
अमित के घर के पहुँच कर जैसे ही अमित के पापा ने दरवाजा खटखटाने के लिए
अपना हाथ आगे बढ़ाया,तभी हाथ का धक्का लगने से दरवाजा अपने आप खुल गया।
दरवाजा खुला देखाकर कुछ सेकेँण्ड के लिए वो ठिठके, पर जैसे ही वो अन्दर
गए,तभी अन्धेरे मे उनके सिर से कुछ टकराया।
उन्होने किसी तरह टटोलते हुए लाईट की बटन ऑन की ही थी कि उनकी नजर छत पर
लगे सीलिँग फैन से लटकती अमित की लाश पर पड़ी।
वो चिल्ला कर वहीँ पर गश खाकर गिर पड़े।
अमित ने प्रिया को हमेशा के लिए तलाक दे दिया था।
प्रिया अमित को आखिरी बार भी देखने नही गई।
शायद वो अपनी उस गलती को याद नही करना चाहती थी,जो उसने अमित से प्यार
करके की थी।...
Judge's Comment - Good format. The story progressed in very "Standard" way. Unfortunately, this "Standard" thing itself kind of became too much. It was very monotonous. Honestly, it felt to me like I have read this story a numerous times before. I was trying to find something different, unique or surprising element which I couldn't. Every upcoming part of the story was guessable. Although the climax was a little bit surprising, but apart from that, none. Still overall, you did a nice job in narrating and you possess a nice potential to develop great stories, if you work on your originality. I am just a little bit skeptical about your source of inspirations.
‘’ प्यार ‘’ जैसे विषय पर जो भी लिखा जाये वह कम ही होगा ! इसके स्वरूप हमेशा बदलते रहते है , प्यार किसी एक रिश्ते का मोहताज नहीं रहा है ,यह जरुरी नही के प्यार सिर्फ आशिक –माशुका तक ही सिमित हो .
यह भाई –बहन का भी हो सकता है ,दोस्तों का भी हो सकता है ,बाप का बेटे से बेटे का बाप से , माँ का अपने पुत्रो से , प्यार ही तो सारे विश्व की बुनियाद है , चलिये इस विषय पर ज्यादा भाषण ना देकर सीधे सीधे उदाहरण पर आते है ,पहला उदाहरण एक मूक जिव का अपने दुसरे साथी के प्रति असीम प्यार का भाव दर्शाता है जो यह साबित करता है के प्यार जैसी भावना पर सिर्फ ‘’मानव ‘’ विशेष का ही अधिकार नहीं है .
घर की हाल ही में मरम्मत की गयी थी , लेकिन उन दिनों बरसात काफी तेज हो गयी थी,वरुण राजा भी अपने प्यार के वशीभूत होकर धरती पर अपना सर्वस्व लुटाने को जैसे तत्पर हो गये थे ! कहते है ‘’बरसात ‘’ प्यार का मौसम होता है , लेकिन यह प्यार का मौसम बिचारे उस व्यक्ति के लिये काफी परेशानी भरा साबित हो रहा था !
घर की दीवारों पर पर अभी कुछ ही महीने पहले लकड़ी की प्लाई का इंटीरियर किया गया था ,लेकिन भारी बरसात की वजह से कुछ दीवारे नमी पाकर रिस रही थी ! अब इसका क्या करे ? तो उन महोदय ने दीवार पर पुट्टी –शुट्टी पोतने का कार्यक्रम बनाया ,जिसके लिये उन्हें रिसाव वाले हिस्से का लकड़ी का इंटीरियर निकालना था ! तो उन्होंने वही किया , इसी दौरान लकड़ी का एक फट्टा निकालते हुये एक दृश्य पर उनकी नजर पड़ी ,जिससे वह ठिठक गये , वहा दीवार पर एक छिपकली एक ‘’कील’’ से बिंधी हुयी थी , कील उस छिपकली के पैर को बींधती हुयी दीवार में धंसी हुयी थी ,जिस वजह से छिपकली हिलने डुलने में असमर्थ थी .
उस व्यक्ति को उसकी इस अवस्थ पर दया आई और उन्होंने उसे निकालने की सोची ,लेकिन तभी उनके दिमाग में यह विचार उभरा के यह छिपकली आखीर कब यहाँ फंसी!
तब उन्होंने अंदाजा लगाया के अभी तीन महीने पहले जब इंटीरियर लगाया जा रहा था तो शायद उसी दौरान यह छिपकली यहाँ से गुजरी होगी और इंटीरियर की एक कील की चपेट में आ गयी होगी ,क्योकि उसके बाद तो यहाँ कोई काम नहीं किया गया है ,इसका मतलब यह छिपकली यहाँ तीन महीने से फंसी है ?
तो वह अब तक जीवित कैसे है ? वह हिल डुल नहीं सकती तो वह खाना क्या खाती है ? आखिर भूखे कैसे जीवित रहती है ? पानी तो खैर दीवार से रिसता ही है लेकिन खाने का क्या ?
यही सोचते हुये उन महोदय ने कुछ देर उस छिपकली को उसी हालत में छोड़ कर उसकी निगरानी करने की ठानी ! कुछ देर इन्तेजार करने के बाद उनकी नजर एक दूसरी छिपकली पर पड़ी जो के एक कोने से निकली , वह आकार में इस छिपकली से छोटी एवं पतली थी उसके मुह में एक मरी हुयी ‘’चींटी’’ दबी हुयी थी , जो उसने धीरे से आकर उस बिंधी हुयी छिपकली के मुह में डाल दी ,और वह बिंधी हुयी छिपकली अपनी क्षुधा शांत करने में लग गयी , यह दृश्य देखकर वे महोदय अवाक रह गये , ‘’ तो क्या यह दूसरी छिपकली तीन महीने इस छिपकली को खिलाती रही ? क्या एक मूक और अदने से जीव में इतना लगाव अपने साथी के लिये हो सकता है ? उफ्फ्फ फिर उन महोदय ने बिना कोई समय व्यर्थ किये बड़ी ही सावधानी से उस छिपकली को उस किल से मुक्त कर दिया, आज उन्हें प्यार और लगाव का एक अद्भुत उदाहरण देखने को मिला था उस बेजुबान से .
एक दुसरा उदाहरण.....समझदार कहे जानेवाले प्राणियों का राजेश ने प्रमिला के बगैर कभी अपने जीवन की कल्पना भी नहीं की थी , प्रमिला भी राजेश को पल भर भी अपनी आँखों से दूर नहीं होने देना चाहती थी ,लेकिन समाज की बंदिशे ....? प्रमिला ने इस बाबत अपने परिवार से बात करने की सोची , लेकिन जैसा के उसे उम्मीद थी वही हुवा घरवाले नाराज , उन्हें लगा बेटी हाथ से जाने लगी है ! प्रमिला के सर पर उस लफंगे ,निकम्मे ,आवारा राजेश का भूत चढ़ गया है ,उसे समझ नहीं है ,कही नादानी में कुछ ऐसा ना कर बैठे जिससे वह अपनी जिन्दगी तो खराब करे ही करे लेकिन परिवार की इज्जत पर भी बट्टा लगा दे .
माँ ने प्रमिला को समझाया , लेकिन प्यार में लोग समझ जाये तो लोग दीवाने क्यों बने ? ऐसे हालात में तो अपने परिवार वाले ही सबसे बड़े दुश्मन नजर आते है ! उनकी सलाहे बेतुकी लगने लगती है ! उनकी भावनाये हमारे प्यार के सामने बेमानी लगने लगती है , दो –चार साल के प्यार के सामने नौ महीने कोख में रखके दर्द सहनेवाली माँ के प्यार का कद छोटा लगने लगता है , अपने अरमानो का गला घोंट कर हमारे अरमानो
को पूरा करनेवाले बाप का प्यार भी इस नये रिश्ते के सामने फीका पड जाता है ! खून के रिश्ते इस दिल के रिश्ते के आगे कैसे बेबस हो जाते है ? जो अपने है वे ही पल भर में किसी पराये से भी ज्यादा बेगाने हो जाते है ?
प्रमिला अगले दिन राजेश से मिली ,दोनों प्रेमी मिले और आंसुवो का सागर बहा दिया मिलके ,कुछ देर रोना धोना समारोह चलता रहा , जब समापन हुवा तब राजेश ने प्रमिला को अपने साथ चलने को कहा !
‘’मेरे साथ चलो ,हम इस बेरहम दुनिया से दूर चले जायेंगे ,जहा सिर्फ तुम और मै हु बस, और कोई नहीं ,जहा कोई प्यार का दुश्मन ना पहुँच सके ‘’
प्रमिला के दिल में राजेश के इन शब्दों से घबराहट और बेचैनी दोनों होने लगी , उसका मन किसी उधेड़बुन में लगा रहा ,कुछ समय की कशमकश के बाद आखिरकार प्रमिला ने निर्णय ले लिया ,
‘राजेश मै सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे साथ नहीं आ सकती , तुम एक बार मेरे माता पिता को मनाने की कोशिश करो हो सकता है के वे मान जाय , मै उन्हें नाराज नहीं कर सकती राजेश , आखिर उनको दुःख देकर मै कैसे खुश रह सकती हु ?
‘’ तुम जानती हो प्रमिला के वे मुझे नहीं अपनायेंगे, तुम्हे उनमे से और मुझ में से एक चुनाव करना ही होगा , वैसे भी शादी के दो एक साल बाद सभी मान ही जाते है ,क्या मै अपने माँ बाप को नहीं छोड़ रहा ? मुझे तकलीफ नहीं है क्या ?
राजेश समझाता रहा लेकिन प्रमिला ना समझी, प्रमिला ‘’प्यार ‘’ के वशीभूत होकर राजेश से दूर जा रही थी !
‘’माँ बाप का प्यार ‘’
राजेश का प्यार समझने पर राजी नहीं था इस बात को ,वह सिर्फ अपनी तकलीफ समझ रहा था प्रमिला की तकलीफ नहीं ,उसकी बेबसी से उसे कोई मतलब नहीं था , प्यार पर स्वार्थ हावी हो गया था .प्रमिला चली गई लेकिन राजेश के मन में गुस्सा छोड़ गई ,राजेश यह सह नहीं पा रहा था के प्रमिला उसे ठुकरा कर चली गई , प्रमिला किसी और की कैसे हो सकती है ?
कुछ समय बिता ,प्रमिला की शादी तय हो गई , राजेश ने इसी बिच कई बार फोन पर बात की , प्रमिला उसे हर बार समझाती लेकिन ऊसपर कोई असर नहीं हुवा ,उलटे राजेश ने उस पर बेवफा होने का ठप्पा लगा दिया ,राजेश का प्यार नफरत में बदलने लगा . उसी नफरत के वशीभूत प्रमिला पर हुवा वह जानलेवा हमला ,जिसने प्रमिला को जीते जी मरने पर मजबूर कर दिया ..
डोक्टरस ने जवाब दे दिया था , वे प्रमिला की जान तो बचा सकते थे लेकिन उसके आँखों की रौशनी और उसकी आवाज नहीं लौटा सकते , ‘’तेज़ाब’’ का बल्ब चेहरे पर फटने से तेज़ाब आँखों और गले तक पहुँच गया था ,जान बची यही गनीमत थी , राजेश को पकड लिया गया था , उसे अपने किये पर कोई अफ़सोस नहीं ,उसे ख़ुशी हुई के उसका प्यार अब किसी और का नहीं हो सकता !
‘’प्यार ?....प्यार का घिनौना स्वरूप ,
प्यार जब हम समझते है के ‘प्यार ‘ जैसे शब्दों की आज के जमाने में कोई अहमियत नहीं है ,मोडर्न होते युवा पीढ़ी के लिये प्यार सिर्फ एक मजे की चीज है, आज किसी और के साथ तो कल किसी और के साथ ,
लेकिन इसी बीच हाई प्रोफायिल समझे जानेवाले समाज में से किसी एक्ट्रेस की आत्महत्या की खबर आती है !
और उसके आत्महत्या की वजह उसका अधुरा प्यार ! जिसे अपनी जिन्दगी मानकर सर्वस्व लुटाती रही उसी की दगाबाजी वह सह ना सकी और आखिरी रास्ते के तौर पर मौत का आसान रास्ता चुन लिया !
तब यह सोच बदल जाती है के प्यार को ही अपना सर्वस्व मानने वाले अभी तक मौजूद नहीं है , आखिर यह ‘प्यार ‘ इतने रंग कैसे दिखाता है ?
पल भर में इंसान कैसे बदल जाता है ? एक कहानी में कहानी की नायिका कहती है ...
‘’ किसी भी इंसान से कभी इतना प्यार मत करो के उसे अपना सब कुछ सौंप दो ,उसके जाने के बाद फिर आपके पास जीने के लिये कुछ नहीं बचता ‘’कितनी अजीब बात है ना ? अब और क्या उदाहरण दू इस प्यार जैसे उलझे हुये विषय पर ? चलिए किसी और का क्यों अपना ही दे देता हु ,
हमने भी अपना सब कुछ खो दिया जब वह हमें छोड़ कर गई , मानो सब खत्म हो गया , उसके बाद जिन्दगी इतनी खाली हो गई के जीने की कोई वजह ही ना बची , जी हां मैंने भी वही ‘’कायर ‘’ कहलानेवाला आसान सा रास्ता अपनाया ,लेकिन जिन्दगी को कुछ और ही मंजूर था ! मरते न बना , अपनेआप से नाराज इंसान भला और क्या कर सकता है ? एक रिश्ते के टूटने पर सभी रिश्तो से किनारा कर लिया , जो रिश्ते आखिरी साँसे ले रहे थे अब उनकी भी साँसे उखड़ रही थी .
ऐसे में किस्मंत ने मिलाया उस से , आई थी एक दोस्त बन कर लेकिन उसके लगाव ने एक अनचाहा सा रिश्ता जोड़ दिया उसके साथ ,हमने कहा था के हम अब कभी प्यार नहीं करेंगे लेकिन किसी के अपनेपन ने हमें प्यार करने को मजबूर कर दिया ,उसने हमारी हर तकलीफ में साथ दिया . उसने महसूस किया के मै उसे चाहता हु ,लेकिन उसने सिर्फ एक अच्छा दोस्त माना हमेशा ,लेकिन वक्त के साथ इस दोस्ती के बदलते स्वरूप को आखिरकार उन्होंने भी प्यार का नाम दे दिया !
उन्होंने कहा अगर हमारे माँ बाप राजी होंगे तभी हम शादी करेंगे अगर वे ना कहे तो उनके खिलाफ नहीं जायेंगे ! माँ बाप की मर्जी के खिलाफ जाके हमने देख लिया था ! अब और नहीं ! किस्मत ने साथ दिया और माँ बाप राजी हो गये , बस फिर क्या था टूटे हुये रिश्ते फिर से जुड़ने लगे ! इस से ज्यादा अपनापन पहले कभी हमने इन रिश्तो में महसूस नहीं किया था , प्यार ने जाहा मेरी जिन्दगी वीरान कर दी थी ,वही प्यार ने ही मेरी जिन्दगी को एक खुशहाल रास्ता दिखाया ,मेरी पहचान बदल कर रख दी , लेकिन यह सब हुवा माँ बाप के प्यार की बदौलत ,अगर वे ना होते तो कुछ भी ना होता आज हमारी शादी को एक महीना १० दिन हो चुके है , अब भाई हम इस से ज्यादा प्यार पर क्या लिखे ? प्यार लिखने की या कहने की चीज नहीं है वह सिर्फ महसुस किया जा सकता है !
Judge's Comment - Choonki aap hindi ki apni shaili ke prati aagrah rakhte hain, me bhi aapse samvaad hindi me hi sthapit karunga. Deven ji, sarvapratham to aapko jeetne ki shubhkaamnaae. Aapko ye jo ank praapt hue hain, wo aapki apni vishisht shaili ke kaaran praapt hue hain, na ki vishay vastu ke kaaran. Poori sachcha se kahu, to aapki rachna me "kahaani" jaisa koi pravaah nahi tha, ye aap bhi jaante hain. Kisi lekh me kuchh udaharano ka samavesh kar diya gaya ho, bas aisa laga - par me aapki shaili ke kaaran padhte padhte mantra mugdh ho gaya. Aapki ye rachna ni-sandeh hi kisi patrika ke prem ank me ek lekh ke roop me prakashit hone layak hai. Me to ye sochkar hi romanchit ho utha, ki apni isi shaili ka istemaal karte hue aap agar koi paki hui kahani likhenge, to wo kitni khoobsurat ban padegi.
Result - Mr. Deven Pandey wins the match and enters Round 3, Mr. Ravendra Singh is eliminated from Freelance Talents Championship.
Judge - Mr. Pankaj Vijayvargiya (Author, Musician and Entrepreneur)
*) - क्या यही प्यार है
(Ravendra Singh)
प्रिया के बयान को सुनकर जज ने अमित को बरी कर दिया और प्रिया को अमित के साथ जाने की इजाजत दे दी। प्रिया के पापा ये सब सुनते ही गुस्से से कोर्ट रुम से बाहर चले गए. अब जब सब कुछ ठीक हो गया था तभी कुछ ऐसा होने लगता है जिसका अमित को पहले से शक था।
आजाद ख्यालोँ वाली प्रिया को अमित के मम्मी पापा के साथ एडजस्ट करने मे प्राब्लम हो रही थी। अपने सारे काम नौकरोँ से करवाने की आदि प्रिया घर के काम करना वो वैसे ही नही जानती थी। इसलिए आखिरकार उसने फैसला किया कि वो और अमित अलग घर मे रहेगे,जहाँ वो बिल्कुल स्वतन्त्रा से रह सकेगी। अमित को प्रिया का ये फैसला पसन्द तो नही आया पर प्रिया की खुशी के लिए ना चाहते हुए भी अमित ने एक छोटा सा घर किराये पर ले लिया। अब अमित और प्रिया अलग रहने लगे।
पर जल्द ही प्रिया को एहसास हो गया कि उसने अलग रहने का फैसला करके गलती कर दी। पहले घर के काम करने मेँ अमित की माँ भी मदद कर देती थीं,वही अब वो सारे काम प्रिया को अब खुद करने पड़ते थे।
नाजोँ मेँ पली प्रिया धीरे-2 इस तरह की जिन्दगी से ऊब गई। जिन्दगी की कड़वी असलियत को जानकर जल्द ही उसके सिर से प्यार का भूत उतरने लगा। उसे अब एहसास होने लगा कि अमित के साथ वो वैसी लाईफ स्टाईल नही पा सकती,जैसी उसे चाहिए थी। इसी कारण वो अन्दर ही अन्दर घुटने लगी,जिससे वो अक्सर बीमार रहने लगी।
इधर अमित को एक छोटी मोटी जॉब मिल गई थी,जिससे बामुश्किल घर खर्च ही चल पाता था। इससे प्रिया की महँगी जरुरते पूरी नहीँ हो पाती थी। अब प्रिया छोटी-2 बातोँ पर अमित से झगड़ने लगती। उनके बीच अब वो पहले जैसा प्यार नही रह गया था।
आखिरकार इस तरह की जिन्दगी से परेशान हो चुकी प्रिया को अपने घर की याद आई,जहाँ उसको फूलोँ की सेज पर रखा जाता था। उसके कहने भर की देर होती थी की उसे जो चाहिए होता था हाजिर हो जाता था।
आखिरकार प्रिया ने अपने पापा से बात करके माफी माँगने की सोची। ये सोचते हुए कि अपनी एकलौती बेटी की अब तक उन्होने माफ कर दिया होगा, जब प्रिया ने अपने घर फोन किया तो फोन को उसके पापा ने रिसीव किया। पर जैसे ही उन्होने प्रिया की आवाज सुनी उन्होने तुरन्त फोन काट दिया। प्रिया ने दोबारा मोबाईल मे कॉल कि और कॉल रिसीव होते ही रोने लगी। प्रिया को रोते हुए देखकर उसके पापा का दिल पिघल गया।
प्रिया ने चाहे जो भी किया था पर अपनी एकलौती बेटी को रोते देखकर वो बेचैन हो उठे। उन्होने प्रिया को चुप कराते हुए उससे रोने की वजह पूछी। प्रिया ने अपनी गलती की माफी माँगते हुए अपने हालात के बारे मे सब कुछ बता दिया। प्रिया ने पापा ने उसे अमित को तलाक देने को कहा। प्रिया पहले तो सोच मे पड़ गई पर जब उसने अपनी नर्क जैसी जिन्दगी के बारे मे सोचा तो उसने अमित को तलाक देने का फैसला कर लिया।
पर अब प्रिया माँ बनने वाली थी,जिसके कारण वो तलाक के फैसले को लेकर थोड़ा परेशान थी।
कुछ सोचकर प्रिया के पापा ने प्रिया को घर आने को कहा।
प्रिया ने अमित से कुछ दिन अपने घर जाने के बारे मे बात की। अमित खुश हो गया कि प्रिया कुछ दिन अपने घर पर रहेगी तो उसका मन बहल जाएगा। यह सोचकर अमित ने प्रिया को घर जाने की इजाजत दे दी।
कुछ दिनोँ बाद जब प्रिया लौटकर आई तो अमित को यह देखकर हैरत हुई कि प्रिया अब पहले से काफी कमजोर लग रही थी। जब अमित ने इसका कारण पूछा तो प्रिया ने जवाब दिया कि उसने अर्बाशन करवा लिया है। यह सुनते ही अमित को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कानोँ मे पिघला शीशा डाल दिया हो।
तुमने ऐसा क्योँ क्या। अमित ने गुस्से से प्रिया से पूछा।
तो मैँ और क्या करती। मैँ अपने होने वाली बच्चे को भी अपनी तरह इस नर्क जैसी जिन्दगी को जीते
हुए मैँ नही देख सकती। इस जिन्दगी को जीने से बेहतर है कि वो इस दुनिया मे आये ही नही।
इतना सुनते ही अमित ने प्रिया के गाल मे जोरदार चाँटा जड़ दिया। मत भूलो कि मेरे साथ जिन्दगी बिताने का फैसला तुम्हारा था,मेरा नहीँ। मैने पहले ही तुमसे कहा था कि मै तुम्हे वो सुख सुविधा नही दे पाऊगा, जिसमे तुम पली बढ़ी हो। अमित ने गुस्से से कहा।
हाँ वो मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी भूल भी,जो मैँने नादानी और नासमझी मे की थी। पर अभी भी देर नही हुई है। मै अब अपनी उस गलती को सुधारना चाहती हूँ। मुझे तुमसे तलाक चाहिए। अब मैँ तुम्हारे साथ और नही रह सकती।
प्रिया ने भी गुस्से से भरकर अमित को दो टूक जवाब दिया।
अमित को आज एहसास हुआ कि प्यार नाम की कोई चीज नही होती। प्यार व्यार सब झूठ और फरेब है।
तुम्हारे लिए मैने क्या नही किया। जमाने भर की दुश्मनी मोल ली यहाँ तक अपने मम्मी पापा को भी तुम्हारी खुशी के लिए छोड़ दिया। क्या यही सब सुनने के लिए मैँने ये सब किया था। मै तुम्हे हरर्गिज तलाक नहीँ दूँगा। तुम्हे मेरी जिन्दगी को इस तरह बर्बाद करने का कोई हक नहीँ है। अमित ने भी प्रिया को तुरन्त जवाब दिया।
यह सुनते ही प्रिया गुस्से से पैर पटकते हुए अपने कमरे मे चली गई।
उस दिन के बाद अमित और प्रिया मे बातचीत बन्द हो गई।
अब दोँनो एक छत के नीचे रहते हुए भी अजनबियोँ की तरह रहते।
अमित यह सोचकर कि प्रिया को एक दिन उसके प्यार का एहसास जरुर होगा।
उसे मनाने की कोशिश करता रहा पर प्रिया ने तो बस तलाक की ही रट लगा ली थी।
जब अमित प्रिया की लाख कोशिशोँ के बाद भी तलाक के लिए तैय्यार नहीँ हुआ
तो प्रिया ने थक हार कर घर छोड़ कर अपने पापा के यहाँ रहने का फैसला करते
हुए घर छोड़ कर चली गई।
अमित इन सब चक्करोँ मे इतना डिस्टर्ब हो गया कि उसकी जॉब भी छूट गई।
ऊपर से प्रिया के जाने के बाद वो अन्दर से टूट गया।
अमित ने प्रिया से मिलने की बहुत कोशिश की पर प्रिया के पापा ने उसे
सरेआम बेइज्जत करके गेट से धक्के मारकर बाहर करवा दिया।
अमित अब पूरी तरह से टूट चुका था।
अब ना उसके पास नौकरी थी और ना ही उसका प्यार प्रिया।
अमित वैसे तो अपने मम्मी पापा से अलग रहता था पर 1-2 दिन मेँ उनसे मिलने
जरुर जाता था।
पर जब अमित अचानक कुछ दिनोँ से उनसे मिलने आना बन्द कर दिया तो उसके पापा
ने खुद अमित से मिलने उसके घर जाने का फैसला किया।
अमित के घर के पहुँच कर जैसे ही अमित के पापा ने दरवाजा खटखटाने के लिए
अपना हाथ आगे बढ़ाया,तभी हाथ का धक्का लगने से दरवाजा अपने आप खुल गया।
दरवाजा खुला देखाकर कुछ सेकेँण्ड के लिए वो ठिठके, पर जैसे ही वो अन्दर
गए,तभी अन्धेरे मे उनके सिर से कुछ टकराया।
उन्होने किसी तरह टटोलते हुए लाईट की बटन ऑन की ही थी कि उनकी नजर छत पर
लगे सीलिँग फैन से लटकती अमित की लाश पर पड़ी।
वो चिल्ला कर वहीँ पर गश खाकर गिर पड़े।
अमित ने प्रिया को हमेशा के लिए तलाक दे दिया था।
प्रिया अमित को आखिरी बार भी देखने नही गई।
शायद वो अपनी उस गलती को याद नही करना चाहती थी,जो उसने अमित से प्यार
करके की थी।...
Rating - 54/100
Judge's Comment - Good format. The story progressed in very "Standard" way. Unfortunately, this "Standard" thing itself kind of became too much. It was very monotonous. Honestly, it felt to me like I have read this story a numerous times before. I was trying to find something different, unique or surprising element which I couldn't. Every upcoming part of the story was guessable. Although the climax was a little bit surprising, but apart from that, none. Still overall, you did a nice job in narrating and you possess a nice potential to develop great stories, if you work on your originality. I am just a little bit skeptical about your source of inspirations.
*) - प्यार
(Deven Pandey)
‘’ प्यार ‘’ जैसे विषय पर जो भी लिखा जाये वह कम ही होगा ! इसके स्वरूप हमेशा बदलते रहते है , प्यार किसी एक रिश्ते का मोहताज नहीं रहा है ,यह जरुरी नही के प्यार सिर्फ आशिक –माशुका तक ही सिमित हो .
यह भाई –बहन का भी हो सकता है ,दोस्तों का भी हो सकता है ,बाप का बेटे से बेटे का बाप से , माँ का अपने पुत्रो से , प्यार ही तो सारे विश्व की बुनियाद है , चलिये इस विषय पर ज्यादा भाषण ना देकर सीधे सीधे उदाहरण पर आते है ,पहला उदाहरण एक मूक जिव का अपने दुसरे साथी के प्रति असीम प्यार का भाव दर्शाता है जो यह साबित करता है के प्यार जैसी भावना पर सिर्फ ‘’मानव ‘’ विशेष का ही अधिकार नहीं है .
घर की हाल ही में मरम्मत की गयी थी , लेकिन उन दिनों बरसात काफी तेज हो गयी थी,वरुण राजा भी अपने प्यार के वशीभूत होकर धरती पर अपना सर्वस्व लुटाने को जैसे तत्पर हो गये थे ! कहते है ‘’बरसात ‘’ प्यार का मौसम होता है , लेकिन यह प्यार का मौसम बिचारे उस व्यक्ति के लिये काफी परेशानी भरा साबित हो रहा था !
घर की दीवारों पर पर अभी कुछ ही महीने पहले लकड़ी की प्लाई का इंटीरियर किया गया था ,लेकिन भारी बरसात की वजह से कुछ दीवारे नमी पाकर रिस रही थी ! अब इसका क्या करे ? तो उन महोदय ने दीवार पर पुट्टी –शुट्टी पोतने का कार्यक्रम बनाया ,जिसके लिये उन्हें रिसाव वाले हिस्से का लकड़ी का इंटीरियर निकालना था ! तो उन्होंने वही किया , इसी दौरान लकड़ी का एक फट्टा निकालते हुये एक दृश्य पर उनकी नजर पड़ी ,जिससे वह ठिठक गये , वहा दीवार पर एक छिपकली एक ‘’कील’’ से बिंधी हुयी थी , कील उस छिपकली के पैर को बींधती हुयी दीवार में धंसी हुयी थी ,जिस वजह से छिपकली हिलने डुलने में असमर्थ थी .
उस व्यक्ति को उसकी इस अवस्थ पर दया आई और उन्होंने उसे निकालने की सोची ,लेकिन तभी उनके दिमाग में यह विचार उभरा के यह छिपकली आखीर कब यहाँ फंसी!
तब उन्होंने अंदाजा लगाया के अभी तीन महीने पहले जब इंटीरियर लगाया जा रहा था तो शायद उसी दौरान यह छिपकली यहाँ से गुजरी होगी और इंटीरियर की एक कील की चपेट में आ गयी होगी ,क्योकि उसके बाद तो यहाँ कोई काम नहीं किया गया है ,इसका मतलब यह छिपकली यहाँ तीन महीने से फंसी है ?
तो वह अब तक जीवित कैसे है ? वह हिल डुल नहीं सकती तो वह खाना क्या खाती है ? आखिर भूखे कैसे जीवित रहती है ? पानी तो खैर दीवार से रिसता ही है लेकिन खाने का क्या ?
यही सोचते हुये उन महोदय ने कुछ देर उस छिपकली को उसी हालत में छोड़ कर उसकी निगरानी करने की ठानी ! कुछ देर इन्तेजार करने के बाद उनकी नजर एक दूसरी छिपकली पर पड़ी जो के एक कोने से निकली , वह आकार में इस छिपकली से छोटी एवं पतली थी उसके मुह में एक मरी हुयी ‘’चींटी’’ दबी हुयी थी , जो उसने धीरे से आकर उस बिंधी हुयी छिपकली के मुह में डाल दी ,और वह बिंधी हुयी छिपकली अपनी क्षुधा शांत करने में लग गयी , यह दृश्य देखकर वे महोदय अवाक रह गये , ‘’ तो क्या यह दूसरी छिपकली तीन महीने इस छिपकली को खिलाती रही ? क्या एक मूक और अदने से जीव में इतना लगाव अपने साथी के लिये हो सकता है ? उफ्फ्फ फिर उन महोदय ने बिना कोई समय व्यर्थ किये बड़ी ही सावधानी से उस छिपकली को उस किल से मुक्त कर दिया, आज उन्हें प्यार और लगाव का एक अद्भुत उदाहरण देखने को मिला था उस बेजुबान से .
एक दुसरा उदाहरण.....समझदार कहे जानेवाले प्राणियों का राजेश ने प्रमिला के बगैर कभी अपने जीवन की कल्पना भी नहीं की थी , प्रमिला भी राजेश को पल भर भी अपनी आँखों से दूर नहीं होने देना चाहती थी ,लेकिन समाज की बंदिशे ....? प्रमिला ने इस बाबत अपने परिवार से बात करने की सोची , लेकिन जैसा के उसे उम्मीद थी वही हुवा घरवाले नाराज , उन्हें लगा बेटी हाथ से जाने लगी है ! प्रमिला के सर पर उस लफंगे ,निकम्मे ,आवारा राजेश का भूत चढ़ गया है ,उसे समझ नहीं है ,कही नादानी में कुछ ऐसा ना कर बैठे जिससे वह अपनी जिन्दगी तो खराब करे ही करे लेकिन परिवार की इज्जत पर भी बट्टा लगा दे .
माँ ने प्रमिला को समझाया , लेकिन प्यार में लोग समझ जाये तो लोग दीवाने क्यों बने ? ऐसे हालात में तो अपने परिवार वाले ही सबसे बड़े दुश्मन नजर आते है ! उनकी सलाहे बेतुकी लगने लगती है ! उनकी भावनाये हमारे प्यार के सामने बेमानी लगने लगती है , दो –चार साल के प्यार के सामने नौ महीने कोख में रखके दर्द सहनेवाली माँ के प्यार का कद छोटा लगने लगता है , अपने अरमानो का गला घोंट कर हमारे अरमानो
को पूरा करनेवाले बाप का प्यार भी इस नये रिश्ते के सामने फीका पड जाता है ! खून के रिश्ते इस दिल के रिश्ते के आगे कैसे बेबस हो जाते है ? जो अपने है वे ही पल भर में किसी पराये से भी ज्यादा बेगाने हो जाते है ?
प्रमिला अगले दिन राजेश से मिली ,दोनों प्रेमी मिले और आंसुवो का सागर बहा दिया मिलके ,कुछ देर रोना धोना समारोह चलता रहा , जब समापन हुवा तब राजेश ने प्रमिला को अपने साथ चलने को कहा !
‘’मेरे साथ चलो ,हम इस बेरहम दुनिया से दूर चले जायेंगे ,जहा सिर्फ तुम और मै हु बस, और कोई नहीं ,जहा कोई प्यार का दुश्मन ना पहुँच सके ‘’
प्रमिला के दिल में राजेश के इन शब्दों से घबराहट और बेचैनी दोनों होने लगी , उसका मन किसी उधेड़बुन में लगा रहा ,कुछ समय की कशमकश के बाद आखिरकार प्रमिला ने निर्णय ले लिया ,
‘राजेश मै सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे साथ नहीं आ सकती , तुम एक बार मेरे माता पिता को मनाने की कोशिश करो हो सकता है के वे मान जाय , मै उन्हें नाराज नहीं कर सकती राजेश , आखिर उनको दुःख देकर मै कैसे खुश रह सकती हु ?
‘’ तुम जानती हो प्रमिला के वे मुझे नहीं अपनायेंगे, तुम्हे उनमे से और मुझ में से एक चुनाव करना ही होगा , वैसे भी शादी के दो एक साल बाद सभी मान ही जाते है ,क्या मै अपने माँ बाप को नहीं छोड़ रहा ? मुझे तकलीफ नहीं है क्या ?
राजेश समझाता रहा लेकिन प्रमिला ना समझी, प्रमिला ‘’प्यार ‘’ के वशीभूत होकर राजेश से दूर जा रही थी !
‘’माँ बाप का प्यार ‘’
राजेश का प्यार समझने पर राजी नहीं था इस बात को ,वह सिर्फ अपनी तकलीफ समझ रहा था प्रमिला की तकलीफ नहीं ,उसकी बेबसी से उसे कोई मतलब नहीं था , प्यार पर स्वार्थ हावी हो गया था .प्रमिला चली गई लेकिन राजेश के मन में गुस्सा छोड़ गई ,राजेश यह सह नहीं पा रहा था के प्रमिला उसे ठुकरा कर चली गई , प्रमिला किसी और की कैसे हो सकती है ?
कुछ समय बिता ,प्रमिला की शादी तय हो गई , राजेश ने इसी बिच कई बार फोन पर बात की , प्रमिला उसे हर बार समझाती लेकिन ऊसपर कोई असर नहीं हुवा ,उलटे राजेश ने उस पर बेवफा होने का ठप्पा लगा दिया ,राजेश का प्यार नफरत में बदलने लगा . उसी नफरत के वशीभूत प्रमिला पर हुवा वह जानलेवा हमला ,जिसने प्रमिला को जीते जी मरने पर मजबूर कर दिया ..
डोक्टरस ने जवाब दे दिया था , वे प्रमिला की जान तो बचा सकते थे लेकिन उसके आँखों की रौशनी और उसकी आवाज नहीं लौटा सकते , ‘’तेज़ाब’’ का बल्ब चेहरे पर फटने से तेज़ाब आँखों और गले तक पहुँच गया था ,जान बची यही गनीमत थी , राजेश को पकड लिया गया था , उसे अपने किये पर कोई अफ़सोस नहीं ,उसे ख़ुशी हुई के उसका प्यार अब किसी और का नहीं हो सकता !
‘’प्यार ?....प्यार का घिनौना स्वरूप ,
प्यार जब हम समझते है के ‘प्यार ‘ जैसे शब्दों की आज के जमाने में कोई अहमियत नहीं है ,मोडर्न होते युवा पीढ़ी के लिये प्यार सिर्फ एक मजे की चीज है, आज किसी और के साथ तो कल किसी और के साथ ,
लेकिन इसी बीच हाई प्रोफायिल समझे जानेवाले समाज में से किसी एक्ट्रेस की आत्महत्या की खबर आती है !
और उसके आत्महत्या की वजह उसका अधुरा प्यार ! जिसे अपनी जिन्दगी मानकर सर्वस्व लुटाती रही उसी की दगाबाजी वह सह ना सकी और आखिरी रास्ते के तौर पर मौत का आसान रास्ता चुन लिया !
तब यह सोच बदल जाती है के प्यार को ही अपना सर्वस्व मानने वाले अभी तक मौजूद नहीं है , आखिर यह ‘प्यार ‘ इतने रंग कैसे दिखाता है ?
पल भर में इंसान कैसे बदल जाता है ? एक कहानी में कहानी की नायिका कहती है ...
‘’ किसी भी इंसान से कभी इतना प्यार मत करो के उसे अपना सब कुछ सौंप दो ,उसके जाने के बाद फिर आपके पास जीने के लिये कुछ नहीं बचता ‘’कितनी अजीब बात है ना ? अब और क्या उदाहरण दू इस प्यार जैसे उलझे हुये विषय पर ? चलिए किसी और का क्यों अपना ही दे देता हु ,
हमने भी अपना सब कुछ खो दिया जब वह हमें छोड़ कर गई , मानो सब खत्म हो गया , उसके बाद जिन्दगी इतनी खाली हो गई के जीने की कोई वजह ही ना बची , जी हां मैंने भी वही ‘’कायर ‘’ कहलानेवाला आसान सा रास्ता अपनाया ,लेकिन जिन्दगी को कुछ और ही मंजूर था ! मरते न बना , अपनेआप से नाराज इंसान भला और क्या कर सकता है ? एक रिश्ते के टूटने पर सभी रिश्तो से किनारा कर लिया , जो रिश्ते आखिरी साँसे ले रहे थे अब उनकी भी साँसे उखड़ रही थी .
ऐसे में किस्मंत ने मिलाया उस से , आई थी एक दोस्त बन कर लेकिन उसके लगाव ने एक अनचाहा सा रिश्ता जोड़ दिया उसके साथ ,हमने कहा था के हम अब कभी प्यार नहीं करेंगे लेकिन किसी के अपनेपन ने हमें प्यार करने को मजबूर कर दिया ,उसने हमारी हर तकलीफ में साथ दिया . उसने महसूस किया के मै उसे चाहता हु ,लेकिन उसने सिर्फ एक अच्छा दोस्त माना हमेशा ,लेकिन वक्त के साथ इस दोस्ती के बदलते स्वरूप को आखिरकार उन्होंने भी प्यार का नाम दे दिया !
उन्होंने कहा अगर हमारे माँ बाप राजी होंगे तभी हम शादी करेंगे अगर वे ना कहे तो उनके खिलाफ नहीं जायेंगे ! माँ बाप की मर्जी के खिलाफ जाके हमने देख लिया था ! अब और नहीं ! किस्मत ने साथ दिया और माँ बाप राजी हो गये , बस फिर क्या था टूटे हुये रिश्ते फिर से जुड़ने लगे ! इस से ज्यादा अपनापन पहले कभी हमने इन रिश्तो में महसूस नहीं किया था , प्यार ने जाहा मेरी जिन्दगी वीरान कर दी थी ,वही प्यार ने ही मेरी जिन्दगी को एक खुशहाल रास्ता दिखाया ,मेरी पहचान बदल कर रख दी , लेकिन यह सब हुवा माँ बाप के प्यार की बदौलत ,अगर वे ना होते तो कुछ भी ना होता आज हमारी शादी को एक महीना १० दिन हो चुके है , अब भाई हम इस से ज्यादा प्यार पर क्या लिखे ? प्यार लिखने की या कहने की चीज नहीं है वह सिर्फ महसुस किया जा सकता है !
Rating - 62/100
Judge's Comment - Choonki aap hindi ki apni shaili ke prati aagrah rakhte hain, me bhi aapse samvaad hindi me hi sthapit karunga. Deven ji, sarvapratham to aapko jeetne ki shubhkaamnaae. Aapko ye jo ank praapt hue hain, wo aapki apni vishisht shaili ke kaaran praapt hue hain, na ki vishay vastu ke kaaran. Poori sachcha se kahu, to aapki rachna me "kahaani" jaisa koi pravaah nahi tha, ye aap bhi jaante hain. Kisi lekh me kuchh udaharano ka samavesh kar diya gaya ho, bas aisa laga - par me aapki shaili ke kaaran padhte padhte mantra mugdh ho gaya. Aapki ye rachna ni-sandeh hi kisi patrika ke prem ank me ek lekh ke roop me prakashit hone layak hai. Me to ye sochkar hi romanchit ho utha, ki apni isi shaili ka istemaal karte hue aap agar koi paki hui kahani likhenge, to wo kitni khoobsurat ban padegi.
Result - Mr. Deven Pandey wins the match and enters Round 3, Mr. Ravendra Singh is eliminated from Freelance Talents Championship.
Judge - Mr. Pankaj Vijayvargiya (Author, Musician and Entrepreneur)
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