Thursday, June 27, 2013

Round 2 (Match # 15) – Dharmesh Talwar vs. Eesh Khan

*) - Family 
(Dharmesh Talwar)
Poem about a terminally ill child by Cancer Disease who is upset and hates how his parents are loving him and hiding the truth from him. He want to love them and give them happiness they deserve but because of the circumstances he feels trapped and alien. 




Your daring
your caring
your nursing
your lies
your blackened hearts
have you ever wondered how I feel
it tears me apart
I hate you and I love you
I can't stand you
I want this all to stop
I need to get away
before my heart gets this way
You're not my mother
You're not my father
if you were
you wouldn't hurt me like this
every night I cry myself to sleep
just to awake and have it start over again
I'm afraid of what I might do
If this pain isn't gone soon
someone save me...
from this hell
I need to sever all of my family tie.
Rating - 55/100
 
 CRAFTMAN OF LOVE

(Eesh Khan)

शाम हो चली थी लेकिन सूरज अभी ढला नही था,,,,,,,,,,,,सूरज की सुर्ख किरणे जंगल के पेडो पे गिर के ऐसा भरम बना रही थी, मानो जंगल मे आग लगी हो.........
फिगार जंगल से लकडियां काट के लौट रहा था,,,,,,उसके एक हाथ मे गट्ठर था और दूसरी मे कुल्हाडी............चेहरे पे पसीने की बूंदे चमक रही थी,,,शरीर भी पसीने से तर-बतर था,,,,,लेकिन चेहरे तथा हाव-भाव मे थकावट के लक्षण नही थे........दूर क्षितिज पे नजरे जमाए वो कबीले की तरफ बढता जा रहा था.......
जल्द ही वो अपने छोटे से कुटिया-नुमा घर पहुंच गया जोकि कबीले के उत्तर-पूर्वी बाहरी छोर पे था... ......
उसने अपने घर के दरवाजे को अपने दाए हाथ से पूरा जोर दे के ढकेला.....अंदर से गर्म सीलन युक्त हवा का एक झोका उसके चेहरे से टकरा के  मानो उससे दिन भर घर मे अकेले रहने की शिकायत कर रहा हो..........थोडा रुक के वो अंदर गया...रेक पे कुल्हाडी टांगी......मेज पे रखे लालटेन को जलाया ही था कि एक तेज हवा के झोके से कबीले की तरफ खुलने वाली खिडकी आवाज करते हुए दिवार से टकराई............साथ ही हवा पे सवार आवाज ने भी कमरे मे प्रवेश किया,,,,हसी..किलकारियो की आवाज......वो खिडकी तक आया....दूसती तरफ...साफ पानी के नाले के पार एक छोटी से वाटिका मे कुछ बच्चे खेल रहे थे,,,,,साथ ही कुछ प्रेमी युगल भी हाथो मे हाथ डाले,,,,अठखेलिया कर रहे थे,,,,,,,,,,,, उसके चेहरे पे एक अर्थहीन मुस्कान आई, जिसे लिये हुए उसने अपनी नजर वाटिका के दूसरी तरफ बने एक भव्य महान की तरफ की......जो की कबीले के संयुक्त मुखियाओ मे से एक की थी........
इमारत के छत पे उस मुखिया की छोटी बेटी चहल-कदमी करते हुए कोइ पुस्तक पढ रही थी,,,,,,,,,,
"
अर्शफिगार के मुह से अंजाने मे निकल पडा...
उसका नाम 'अर्श' था.........जो की वाकई मे फिगार की वो अर्श थी,,,,जिसे वो पा नही सकता था......
फिगार और अर्श एक साथ ही खेले-पढे .....साथ ही बडे हुए............. जाने कब फिगार को अर्श से लगाव हो गया,,,
लेकिन उनका साथ सिर्फ यही, किशोरावस्थया की दहलीज तक था....
फिगार को अपनी असलिअत पता थी....उसकी position एक गुलाम से ज्यादा थी......दूसरे गुलामो से वो सिर्फ इन मायनो मे अलग था कि उसे कबीले के लोगो की सहानभूति मिलती थी......
वो सहानभूति जो उस कबीले द्वारा फिगार पे की गयी बर्बरता से एक ढोंग से ज्यादा कुछ था,,,,
फिगार दो जवां जिस्म के वासना के सैलाब मे बह जाने के का जिंदा   अनचाहा  परिणाम   था.......उसके मां-बाप कोन थे किसी को नही मालुम...वो तो कबीले के बाहर नाले के पास मिला था....... कबीले के अनुसार वो एक पाप की निशानी था,,,,जिसे जिंदा दफन करने का निर्णय लिया गया......लेकिन कबीले की एक महिला मुखिया ने उसे अपने पद के बदले जीवन दान दिला दिया...लेकिन कबीले के नियम के अनुसार ये अन्चाहा बालक विनाश का बीज हो सकता था.....इसलिये कबीले के कानून के रक्षको ने उसके जिंदा रहने की शर्त रखी,,,,,,,जीवन के बदले उसकी जनन-क्षमता ताकी वो कभी भी कबीले पर शैतान की नजर ला सके........फिर सभी मुखियाओ के सर्व-सहमति से उसको (फिगार) को castrate कर दिया गया,,,,,



अचानक अर्श की नजर उसकी तरफ घूमी....और फिगार अपने सपनो कि दुनिया से चौक कर बाहर निकला...............एक पल को दोनो कि नजरे मिली.....और दूसरी ही पल उसने अपने आप को खिडकी के दूसरी तरफ छुपा लिया............ इस एक पल ने उसकी सांसो को उसके अधिकार से बाहर कर दिया,,,,,
उसके सामने उसका अतीत झलक गया,,,,,,,,,, उसे ताउम्र सिर्फ सहानभूति मिली.....विद्यालय मे शिक्षको की...कबीले मे लोगो की.....लेकिन प्यार नही,,,,,,,या शायद वो प्यार और सहानभूति मे अंतर ही नही करने लायक गया....
लेकिन कक्षा मे तो उसे अपने सहपाठियो से कुछ और भी मिला.....वो अनके लिये एक वस्तु बन गया.....वो पुरुष के तरह ही माना जाता....उसे लडके की ही तरह माना जाता था,,,,,लेकिन जब बात किसी खेल या शस्त्र कला की आती...तो उसे नमर्द का तमगा दिया जाता........... तंग के वो लडकियो के साथ ही खेलने लगा,,,,,,उनके अभिभावको को भी कोइ परेशानी थी,,,,,,,,आखिर कबीलो मे लडकियो के सेवक तथा रक्षक ..किन्नर ही तो होते थे.......
यही उसकी मित्रता अर्श से हुइ.......अर्श जो कि एक भोली-भाली लडकी थी,,दूसरे लडकियो से अलग...अपनी दुनिया मे रहने वाली,,,,,,,दोनो मे जल्द ही गहरी दोस्ती हो गयी....और यही गहरी दोस्ती फिगार की तरफ से प्यार मे बदल गयी....
                           
लेकिन जवानी के साथ फिगार मे भी समाज से जुडी सच्चाई सामने आने लगी,,,,,,,वो समझ गया कि वो एक नमर्द है,,,,,जिसे प्यार करने...अपना घर बसाने का हक नही था......
फिगार ने अपने आप को crafting मे झौंक दिया,,,,,जल्द ही वो सबसे बढिया craftman बन गया.... लकडी का तो वो बेजोड craftman था.....catapult से लेके धनुष तक.....बर्तन से लेके सजावट के समान तक.............
लेकिन वो अब भी गुलाम था....अपने शरीर का....उसके एक अंग के ना होने का.........
ये सोचते- वो यथार्थ मे लौट आया.....बाहर झांका....अर्श अब भी वहा थी...उसने जल्दी से सर अंदर किया.....एक झटका दिया,,,,,और लालटेन ले के अपने कार्यशाला मे बढ चला,,,जो कि उसके घर के पिछ्ले हिस्से मे था........
एक तरफ कपडे से ढका ,,लकडी का कुछ रखा था,,,उसने अपने औजार उठाए....और चेहरे पे एक  दॄढ निश्चय लियी.....अपने काम मे लग गया.....
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हफ्ते बाद
एक तूफानी...काली रात

फिगार काले पहाडो के पास के गहरे जंगलो से बढा जा रहा था,,,,उसका रुख अपने घर की तरफ था.........कमर पे बधी पोटली मे कोइ चीज चमक रही थी,,,,,,,,,,,उसका एक हाथ उसी चीज को बार बार टटोलता रहता था,,,,,,
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घर पहुच के उसने दरवाजा बंद किया,,,,अपने कमर की पोटली से वो चमकदार चीज निकाल के मेज पे रखा,,,,,,वो चमकदार चीज किसी तरह का potion था.....वो अंदर अपने कार्यशाला के ओर गया,,,,,,कुछ देर मे जब वो लौटा तो उसके पीठ पे एक भारी गट्ठर था,,,,,,,,उसने potion उठाया....और बाहर निकल कर कबीले के बाहर गया,,,एक बार इधर-उधर देखा, फेर पूर्व की ओर की सडक पे निकल पडा............
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पूर्व की ओर एक समुद्र् पडता था,,,,रास्ता पक्का था,,,,वो थोडी देर पक्के रास्ते पे चलता गया.......बारिश पड रही थी,,,,उसका चेहरा पानी का बना लग रहा था,,,,,लेकिन शायद वो रो रहा था,,,,,,
कुछ दूर चलने के बाद वो जंगल के तरफ मुड गया....जंगल मे भारी बारिश से चारो तरफ कीचड था,,,जिस पे पानी की बूदे मानो कोइ साज बजा रही हो...जंगल मे थोडी देर चलने के बाद वो एक छोटे से घर मे प्रवेश कर गया,,,,यह लकडहारो द्वारा आपात-काल मे प्रयोग की जाने वाले घर थे....
वो थोडी देर रुका..पीठ से गठरी को उतारा....पानी को अपने उपर से हटाया,,,बालो को सीधा किया...........और फिर थोडी देर तक गठरी को निहारता रहा,,,,,,
उसने जठरी को खोला तो उसमे से लकडी की बनी मानव कद मूर्ती निकली...........कमरे मे रोशनी की व्यावस्था नही थी....उसने एक तरफ पडी मोमबत्ती को जलाया,,,,,और उसके पीले प्रकाश मे मूर्ती नहा गयी,,,,,और जो चेहरा सामने आया.....वो अर्श का था.....
फिगार ने मूर्ती को सीधा किया...उसका हाथ अपने हाथ मे लिया.....एक पल को उसकी बेजान आंखो मे देखा.....फेर अपने दूसरे हाथ को देखा..जिसमे वही चमकीला potion था,,,,,,,,,कुछ पल को वो ठहरा.....फिर उस शीशी को होंठो से लगा लिया  एकाएक तेज बिजली चमकी..और फिर उसके पीछे आती आवाज ने मानो रात को जगा दिया

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सुबह की पहली रोशनी की किरण कमरे मे दाखिल हुई...और उस गेरुए रंग की काया की आंख किसी फूल की कलि की तरह धीरे- खुली....और वातावरण की ठंडक  ने उसके पूरे जिस्म को छू के सर्द कर दिया....वो चौक के पीछे हटी और अपने आप मे ही सिकुड गयी......उसके तन पे कपडे नही थे......उसने सामने देखा वहा कोइ लेटा हुआ था,,,,वो धीरे से उस ओर ..हिचकिचाते हुए बढी,,,,,,,,,उसको टटोला....कुछ असर पडा,,,,उसको धीरे से हिलाया,..और वो खाली बोतल से एक तरफ लुढक गया.....
वो लकडी का एक पुतला था,,,बिल्कुल जिंदा सा........वो फिगार था......वो लडकी एक पल को चौकी..उसके चेहरे को यु देखने लगी मानो उसे पहचानने का जत्न कर रही हो........फिर उसके शरीर से कपडे उतार लिये,,,उतार कर उन्हे पहना....और महसूस किया कि जेब मे कुछ है.....उसने देखा,,,वो एक चमडे मे लिपटी...डायरी सी थी....वो खुद को उसे पढने से रोक पाई....... और ही अपने आप को उन शब्दो मे खो जाने को...
जल्द ही उसने आखिरी पन्ने को पलटा...................
"
मै शायद नामर्द हु,,,लेकिन मै जिंदा हु,,,मै इसी कायनात का हु....
मेरा अस्तित्व एक अंग का गुलाम नही,,,,,,,,,,,,,,,मै भले ही काम की प्यास बुझा सकु, भले ही शारीरिक सुख दे सकु , महसूस कर सकु,,,,लेकिन मै प्यार कर सकता हु,,,,,,,,उसे महसूस कर सकता हु...

मैने तुम्हे बनाया...अपना जीवन दिया,,,,ताकि तुम मुझ जैसो को समझ सको,,, उन्हे सहानभूति नही,,प्यार दे सको......"
                                                                                    
इसके साथ ही उसने डायरी बंद कर दी......फिगार की तरफ देखा,,,,,फिर एक तरफ पडी कपडे को उठाया,,,,फिगार के हाथ से शीशी निकाली (जिसमे अभी भी कुछ potion बचा था),,फिगार को कपडे मे लपेटा...उठाया....और बाहर निकल पडी.....
बाहर धूप तेज होने लगी थी.....रात की बारिश के निशां मिटने लगे थे,,,,,,उसने  चारो तरफ देखा..एक गहरी सांस ली..और पूरब की ओर उठते सूरज की ओर बढ चली,,,,,

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समाप्त....................................

Rating - 65/100

 Judge's Comments -

Dono writer ne waapis achchi mehnat ki hai....

Dharmesh talwaar ji ne poem likhne me apna pura yogdaan diya hai, concept bhi achcha chuna hai  par kai par kuch missing lag raha hai.. jaise poems me words milne jaruri hai jo nahi ho rahe hai...

Eesh khan ji ne jo story likhi woh shuruaat me to muje aisa laga ki yeh IBNE SAFI ne likhi hai kyonki presentation same tha, concept bhi achcha tha kuch kami hai story ko aur behtar banaaya jaa sakta tha....

Result - Mr. Eesh Khan wins the match and enters Round 3, Mr. Dharmesh Talwar is eliminated from FT Championship.



Judge - Mr. Fenil Sherdiwala (Author, Entrepreneur & Fenil Comics CEO) 

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