Sunday, June 16, 2013

Round 1 (Match # 28) - Deven Pandey vs. Pawan Khorawal

*) - भारतीय संस्कृति एवं समाज

(# 28 - Deven Pandey)


'' राहुल '' यह क्या कर रहे हो , ?
'' चाची , यह ''हरिया भईया ' ने लड्डू भेजे है ,उनके यहाँ ''पोता '' हुवा है ना ,आप भी लीजिये आपके लिये ही तो भेजा है ''
''राहुल पगला गया है क्या ? अभी अभी मै  पूजा करके निकली हु ,रामलला को भोग लगाया है ,और तू मुझे यह खिला रहा है ''
;तो इसमें बुरा क्या है चाची ?''
''अरे पगले तू अभी शहर से आया है ना इसलिये यहाँ से अनजान है ,अरे पगले वह हरिया ''नीची ''जाती का है ,उसके हाथ का खाना मुझसे ना खाया जायेगा .''
राहुल सन्न रह गया यह उत्तर सुन कर !
क्या अब भी ऐसे ढकोसले मौजूद है ?
''ठीक है चाची ,ना खाओ , मैंने यही रख दिया है ''
''अरे राहुल सुन तो ,वह लड्डू '' गईया '' को खिला दे ,तू भी मत खा ,और हां आज अपने खेतो के '' गन्नो '' ( ऊख ) की कटाई है और ' बबऊ केवट ' रस का गुड बनायेंगे भट्टी पर ,खेत में ही भट्टी लगी है शाम तक काम होगा जा चले जा ,मन लगा रहेगा तेरा ''
जी चाची
शाम को भट्टी पर ......
'' राहुल बबा पाय लागी ''
''अरे 'बबऊ '' काका यह क्या कर रहे है आप ? आप इतने बुजुर्ग है और आप मुझे पैलगी कर रहे है , लज्जित मत कीजिये मुझे ''
'अरे राहुल बेटवा आप ''सहर '' ( शहर) से आये है ना इसलिये ऐसा कह रहे है , आप ऊँचे लोग है ,हम तो जन्मे ही आप की सेवा के लिये है '
'' काका ज़माना कहा से कहा चला जा रहा है और आप अब भी वाही सोच ले के बैठे है ? आप बुजुर्ग है आप खुद समझदार है ,अब मै  आपको क्या समझाऊ ? आदमी सिर्फ ऊँची या नीची जाती में पैदा होने से बड़ा या छोटा नहीं होता वह तो अपने कर्मो से बड़ा होता है '
'' राहुल बेटा ,यही तो आपका बडप्पन है जिसके लिये आप सम्मान के हकदार है , अगर हम आपको सम्मान नहीं देंगे तो हमें पाप लगेगा , अच्छा जाने दो !

यह लो गर्मागर्म 'गुड '' बनाया है अभी अभी, ले जाओ और ज़रा ''अईया '' ( चाची ) से पूछना तो अच्छा बना है या नहीं ''
घर पर ...रामायण चल रही है , शबरी के ''जूठे ' बेरो का उल्लेख आया है !
घरवाले ,पडोसी ,और कुछ गाँव वाले ''रामायण '' भक्तिभाव से सुन रहे है !
''राहुल '' ने चाची को ढूंढा जो प्रसाद बनाने में व्यस्त थी ,
'' चाची '' यह लीजिये 'बबऊ '' काका ने गुड भेजे है ,चख लीजिये ,''
चाची ने गुड चखा ,और एक भेली गर्मागर्म गुड लपक के पाने मुह में रख लिया ,
'' उम्म्म वाह वाह बहुत ही बढ़िया है , वैसे भी कल ''रामायण '' का समापन है गाँव भर में न्योता दिया है , कल बटेगा ''
राहुल कुछ सोच रहा था .

'' सियावर राम चन्द्र की ''
'' जय '' .....अचानक हुये जयघोष से राहुल की तन्द्रा टूटी .

अगले दिन शाम का वक्त न्योते में गाँव के ढेर सारे लोग आये ,
पंडित टोले के लोग घर के बरामदे में बैठे थे जिन्हें भोजन एवं प्रसाद परोसा जा रहा था , और दुसरे 'टोले '' के लोग
घर के आंगन में बैठे अपनी बारी की प्रतीक्षा में .
'' चाची , यह बरामदे में और आंगन  में सुविधा अलग अलग क्यों है ? ''
' बेटा  यह बरामदे में जो बैठे है वे ऊँची जाती के लोग है ,उन्हें यह कैसे अच्छा लगेगा के उन्हें छोटी जाती के लोगो के साथ बिठा दिया जाय ? इसलिये उनके लिये  अलग व्यवस्था की गयी है '

'' लेकिन चाची साथ में खायेंगे तो क्या हो जायेगा ?'
'' बेटा पाप लगता है , यह व्यस्था तो प्राचीन काल से चली आ रही है ,संस्कृति ही है यह ,और हम अपनी संस्कृति तो नहीं छोड़ सकते ?'

'' चाची हमारी संस्कृति श्रीराम है , विष्णु है ,महेश है , जब इन्होने किसी में भेद नहीं किया तो हम क्यों करे ?'
'कहना क्या चाहते हो राहुल ? ''
' मै  यह कहना चाहता हु चाची , के आपने 'हरिया '' भईया के लड्डू  लौटा दिये , क्योकि वो छोटी जाती का था ,लेकिन आपने 'बबऊ ' काका के गुड तो खा लिये , क्या वे छोटी जाती के नहीं है ? और तो और उसी गुड को ''श्रीराम ' जी के प्रसाद स्वरूप वितरित करना है ,तो क्या यह पाप नहीं है ?''
चाची सन्न रह गई ...एक् क्षण को कुछ नहीं सुझा उन्हें .
'चाची जाती तो हम ही बना रहे है ,अपने अपने फायदे के अनुसार हम उसमे फेरबदल करते रहते है , संस्कृति कभी नहीं सिखाती के आप आदमी में बैर करो उन्हें जाती में बांटो ,इंसान ही उसे अपने फायदे के लिये तोड़ मरोड़ के नियम बनाता है !
हम भगवान श्रीराम के गुण गा सकते है , शबरी के बेरो की कथा भाव विभोर होकर सुन सकते है ,लेकिन भगवान के आदर्शो पर नहीं चल सकते ,जब उन्होंने भेद नहीं किया तो हम क्यों करे ?

भगवान राम ने '' धोबी '' के कहने भर से ''सीता मईया '' को त्याग दिया , फर्क तो उन्हें करना चाहिए था उस वक्त .
कौन सी जाती छोटी है चाची ? शादी बियाह में हमारे यहाँ बिना '' नाऊ '' के काम नहीं चलता ,बिना ''कहार'' के पानी भरे बरात नहीं निकलती ,हर रस्म में छोटी जातियों की जरुरत है ,यह ना हो तो शादी नहीं हो सकती तो कैसे हम इन्हें छोटा कह सकते है ?
उनके हाथ से खाने पर आप अशुद्ध हो जाती है ,लेकिन उनके हाथ लगाये बगैर ''विवाह '' जैसा शुभ कार्य नहीं हो सकता .
अगर हम आदमी को जाती में बाँट ते है तो हमें कोई हक़ नहीं बनता के हम प्रभु श्रीराम के गुण गाये या उनकी भक्ति करे , हमारी भक्ति तो उसी पल माटी मोल हो गई जिस पल हमने जाती भेद करना शुरू कर दिया !
आपने लड्डू '' गईया '' को खिला दिये ,लेकिन गईया का दूध तो हमने ही पीया ना ? उसी दूध से राम लला का अभिषेक हुवा ना ?
तो क्या वह पाप नहीं हुवा ?

चाची को कुछ बोलते नहीं बना ...
और राहुल तमतमाते हुये आंगन में निकल गया गया .
उसके दिमाग में यही बाते चल रही थी  ....
'' गलती अगर ऊँची जाती की है तो उसमे योगदान ''छोटे '' कहलानेवालो  का भी है ,उनकी भी मानसिकता यही है के हम अगर ''ऊँचो '' का सम्मान नहीं करेंगे तो हमें पाप लगेगा ''
तो भैया कृपया कोई यह तर्क ना दे के आज के जमाने में ऐसा कम ही होता है ,जिन्हें तर्क करना हो वे एक बार अपने गाँव में जाके देख सकते है ,

भारतीय संस्कृति एवं समाज के उजले पहलु तो कई है लेकिन उसके स्याह पहलु भी कम नहीं है ,
संस्कृति और परम्पराओं के नाम पर हम पर काफी ढकोसले थोप दिए गये  है , इनमे से कई परम्पराए तो ऐसी है जिनका कोई सर पैर नहीं है ..
जैसे हमारे पास के गाँव का एक उदाहरण है ..

काफी साल पहले किसी के घर में बहु आनेवाली थी ,जब बहु विदा होक आनेवाली थी तो
सास ने अपनी बहु और बेटे के कमरे को सजाना शुरू किया ,
अभी काम अधूरा ही हुवा था के तब तक सारे तामझाम के साथ बहु आ गयी ,
ऐसे में उसी कमरे में सास को एक बिल्ली दिखी ,किसी की नजर ना पड़े और बिल्ली कही दूध ना पि ले इसलिये
सास ने बिल्ली के ऊपर एक टोकरी रख दी .
सब कुछ निपट जाने के बाद अगले दिन जब नयी नवेली बहु ने घर के कोने में उलटी टोकरी देखि तो उसे उसने पलटा तो पाया के उसमे एक बिल्ली मृत अवस्था में थी .
इस बाबत जब सास को पूछा गया तो उन्होंने कह दिया के '' यह हमारे यहाँ का रिवाज है के जब नयी बहु आये तो उसके कमरे में बिल्ली मार के टोकरे में रख दो , यह शुभ होता है ''
अब भाई, यह कहकर सास ने तो जान छुड़ा ली लेकिन बिल्लियों की शामत आ गयी !
अब उस घर का रिवाज हो गया और हर बार नई बहु के आने पर यही क्रम  दोहराया जाता रहा, जो अब तक चलता आ रहा है !
लोग इसके पीछे की कहानी जानते है ,लेकिन परम्परा की बेडी इतनी मजबूत है के सब कुछ जानते हुये भी हर बार नयी बहु आने पर बिल्ली अवश्य मारी जाती है .

और उदाहरण है . हमारे यहाँ मानना है ( उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलो में ) के
''गुरुवार '' को कपड़ो में और बदन पे साबुन नहीं लगाना चाहिये ,अशुभ होता है ,
अब जहा तक मैंने छान बिन की तो मुझे कुछ बुढो ने बताया के किसी ''आलसी '' बहु ने एक बार बिना साबुन के कपड़े निचोड़ दिये
जब सास ने पूछा तो उसने कह दिया ''गुरुवार को कपड़ो पर और बदन पर साबुन लगाना अशुभ होता है ''धन '' नहीं रुकता ''
बस तब से यह परम्परा चली आ रही है हमारे समाज में .
कुछ इसी तरह की कहानी स्त्रियों के बाल धोने को लेके भी है ,
एक दिलचस्प उदाहरण और भी है ( उत्तर भारत का )
यहाँ शादियों में '' गालियाँ '' देने का रिवाज है ,जो के औरते देती है ( काफी गन्दी गन्दी गालियाँ होती है भाई हिहिहिही )
हर रस्म में लगभग ,गालियाँ होती ही है ,
जब इसका रहस्य पता करना चाहा तो वही जवाब ''यह शुभ होता है ''
जब कुछ बुढो से पूछा तब उत्तर मिला के पुराने जमाने में शादियों के दौरान शादी करवानेवाले रिश्तेदार और बाराती ,लडकी वाले सभी की अपनी अपनी मांगे होती है हमें यह चाहिये वह चाहिये ,इतना नेग चाहिये , इस वजह से लोग परेशान रहते थे ,
खासतौर से लडकी वाले ,!
तो औरतो को उन सभी को गालिया देने का मन करता था ,लेकिन लाज वश वे दे नहीं पाती ,तब जाकर नयी तरकीब निकाली गई के क्यों न गालियों की ही रस्म बना दी जाये ,इस से किसी को बुरा भी नहीं लगेगा और हमारी भडास भी निकल जायेगी .
तब से हर शादी में गाली का रिवाज शुरू हो गया जो आजतक चलता आ रहा है ..
 यह बात और है के ऐसा लगता है मानो गालियों की कोई प्रतियोगिता हो रही है .
( हमारी शादी में भी पड़ी थी गालियाँ मोटी मोटी )
कुछ बुराईयों के साथ ( ढेर सारी ) कुछ अच्छाईयो के साथ हमारी संस्कृति ऐसी ही ना जाने कितने ही रस्मो रिवाजो एवम परम्पराओं भरी हुयी है ...
लेकिन बुद्धि हमें लगानी है के हमें कौन सी अपनानी है और कौन सी नहीं ,बस किसी ने कह दिया और हम लग गये,
तब तो गया समाज एवम संस्कृति दोनों का बंटाधार ...
लिखना तो बहुत कुछ था अभी ,लेकिन शब्दों की सीमा ने बाँध दिया .मैंने गिने नहीं लेकिन लगता है मैंने सीमा तोड़ दी है ,अगर ऐसा है तो भाई कुछ पाराग्राफ सेंसर कर दीजियेगा हिहिहिही

 समाप्त!

*) - Entry not submitted by # 37 Pawan Khorawal 

Judging not applicable

Result - Deven Pandey is the winner of the match by Walkover victory and goes to final 32 round. Pawan Khorawal is automatically assigned to Parallel League. 

1 comment:

  1. post count to maine bhi nhi gine ...hehehe
    par apki story cum article lag rahi thi .. apne jo story shuru ki .. use bich me chor kar article bana diya apko us story ko pura karna chahiye tha .. is galat parampara ko door karne ka tarika batana chahiye tha ..
    btw .. acha hai .. par aur acha ho sakta tha
    all the best ..
    my rating
    5.1/10

    ReplyDelete